दहेज – प्रथा के दोष बताते हुए मित्र को जागरूक करने हेतु पत्र
13, हाऊसिंग सोसाइटी,
साउथ एक्सटेंशन पार्ट-1
नई दिल्ली-110049
दिनांक 23 अप्रैल,
प्रिय मित्र,
सप्रेम नमस्ते ।
कृपया मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करो । तुम्हार, पत्र अभी-अभी मिला, जिसमें तुमने अपने विवाह के संबंध में मेरी सम्मति मांगी है।
तुमने लिखा है कि एक परिवार की कन्या कुछ अधिक पढ़ी हुई है, शायद कहीं नौकरी भी करती है। वे लोग अधिक बरात नहीं चाहते और दहेज में भी केवल तुम्हारे व कन्या के वस्त्र ही दे सकते हैं। दूसरे परिवार से तुम्हें पचास हजार रुपये नकद और कुछ मूल्यवान सामान मिलने की आशा है, जिससे तुम अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने का स्वप्न देख रहे हो । साथ ही तुम्हें उस परिवार की कन्या कम सुंदर, कम शिक्षित होने के कारण पसंद नहीं। मैं पूछता हूँ मित्र ! आखिर किसी के जीवन के साथ सौदेबाजी करने की यह प्रवृत्ति क्यों ? तुम्हारे और हमारे माता-पिता लड़कों को हुंडी बनाकर भुनाने की कोशिश करते हैं । हम जैसे शिक्षित युवकों को उनका विरोध करना चाहिए। हमारे देश के सत्तर प्रतिशत परिवार निर्धन हैं । वे दो समय का भोजन और शरीर ढकने के दो वस्त्र कठिनाई से जुटा पाते हैं। यदि उनकी कन्याओं का जीवन केवल इस कारण अभिशाप बन जाए कि वे दहेज नहीं दे सकते, तो यह हमारे समाज के लिए कलंक है। मित्र, यदि हमारी बहिन के संबंध में भी रिश्ते के लिए आने वाले ऐसा ही दृष्टिकोण रखें, तो हमारी क्या दशा होगी ? हमें केवल अपना स्वार्थ ही नहीं देखना है, पूरे समाज और राष्ट्र का हित सोचना है । अत: तुम्हें मैं यही परामर्श दूंगा कि तुम अपना भविष्य देखो। दहेज की कसौटी में मत आओ।
आशा है, मेरे अनुरोध पर तुम उदारता से विचार करोगे । उत्तर अवश्य देना ।
पूज्य माता जी और पिता जी को मेरी ओर से प्रणाम ।
तुम्हारा अभिन्न हृदय,
संदीप कुमार रस्तोगी