गणतंत्र दिवस के परेड का उल्लेख करते हुए मित्र को पत्र ।
सप्रेम नमस्ते ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु ।
विगत सप्ताह तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे पिता जी की अस्वस्थता की खबर पढ़कर मन व्यथित हो उठा। कदाचित इसी कारण तुम गणतंत्र दिवस पर यहाँ नहीं पहुँच सके। आशा है कि अब तुम्हारे पिता जी पूर्ण रूप से स्वस्थ होंगे।
कल गणतंत्र दिवस के जुलूस में जो कुछ देखा, उसका सजीव चित्रण इस पत्र में कर रहा हूँ। इस बार भी हर वर्ष की भाँति देखने वालों की संख्या अधिक थी। जुलूस में धक्के मुक्कों का बाजार गरम था । शांतिप्रिय दर्शक विहान वेला से ही सहस्रों की संख्या में इंडिया गेट के बाहर बैठ गए थे।
निश्चित समय पर विजय चौक पर महामहिम राष्ट्रपति जी ने जल, थल और वायु सेना के सैनिकों से सलामी ली । तत्पश्चात विद्यालय एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों की टोलियाँ राष्ट्रीय गीत गाती हुई सलामी मंच के सामने से गुजरौं। फिर प्रांतीय सैनिकों की टोलियाँ अपनी निराली वेश-भूषा में सलामी देती गंतव्य पथ की ओर बढ़ गई। इसके बाद शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित गाड़ियाँ, तो व आधुनिक बम आदि ले जाने वाली गाडियाँ थीं। इनके पीछे 27 विभिन्न प्रदेशों की सांस्कृतिक एवं कलात्मक झाँकियाँ थीं, जिनकी शोभा को देखते-देखते आँखें नहीं अघाती थीं। इनमें मैसूर राज्य की झाँकी अद्वितीय थी। इनमें वहाँ की औद्योगिक प्रगति के दर्शन कराये गए थे। यह जुलूस लगभग 5-30 मील लंबा था। यह लगभग 12 बजे लाल किले पर पहुँचा ।
बहुत से लोगों ने भीड़ आदि से बचने के लिए जुलूस को टेलीविजन पर देखा। मैं भी उनमें से एक था। मेरी ओर से बड़ों को यथायोग्य नमस्कार व छोटों को मृदुल प्यार।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में।
तुम्हारा अभिन्न मित्र, ,
मुकुल