चरित्र बल
‘चरित्र’ से आशय है-व्यक्ति का चाल-चलन या जीवनयापन की पद्धति। चरित्र व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण है, इसीलिए चरित्र को आदतों का समूह कहा गया है, जिसमें अनेक गुणों का समावेश है। चरित्र मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है, उसकी वास्तविक शक्ति है, उसकी उन्नति का मूलाधार है, उसकी प्रतिष्ठा एवं सम्मान का आधार है तथा उसके आत्मविश्वास का परिचायक है। चरित्रवान व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक शक्ति होते हैं। चरित्रवान व्यक्ति कालजयी होते हैं। इतिहास चरित्रवान लोगों के अनगिनत उदाहरणों से भरा पड़ा है, जो नश्वर शरीर नष्ट हो जाने पर भी अमर हैं, जिनके आदर्श आज भी हमारा पथ-प्रदर्शन करते हैं। किसी भी देश की उन्नति और प्रगति का आधार भी वहाँ के निवासियों का चरित्र बल ही है। राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमारा यह विशाल देश मुट्ठी भर विदेशियों द्वारा पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा गया तथा गांधी सरीखे अनेक चरित्रवान महापुरुषों के नेतृत्व में इसने पुनः स्वाधीनता प्राप्त की। ‘सत्संगति’ चरित्र निर्माण का सर्व प्रमुख साधन है। चरित्र निर्माण का सबसे उपयुक्त समय शैशवकाल तथा विद्यार्थी जीवन होता है। इसी काल में छात्र-छात्राओं में अच्छे संस्कार डाले जा सकते हैं। दुर्भाग्य से आज हमारे समाज में राष्ट्रीय चरित्र में गिरावट आई है, जिससे चारों ओर अनैतिकता, भ्रष्टाचार तथा अपराधों का बोलबाला है। आज युवकों को चरित्रवान बनाने की दिशा में गंभीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।