पर्यावरण प्रदूषण
हमारे आस-पास का प्राकृतिक वातावरण जिसमें हम रहते हैं-‘पर्यावरण’ कहलाता है। इस प्राकृतिक वातावरण का दूषित हो जाना या इसका संतुलन विकृत हो जाना ही प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण की वृद्धि का कारण मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ मनचाही छेड़छाड़ है। मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की, पर्वतों को तोड़ा, परमाणु भट्ठियाँ बनाईं तथा अनेक प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग किया, जिसके कारण प्राकृतिक संतुलन डगमगा गया और हानिकारक हो गया। प्रदूषण के विस्तार में कल-कारखानों से निकलने वाला धुआँ, गैसें तथा औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ भी सहायक हैं। प्रदूषण चार प्रकार का होता है-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और भूमि प्रदूषण। वायुमंडल में जहरीली गैसों के कारण वायु प्रदूषण होता है। कलकारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को, जो नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता, तो जल दूषित हो जाता है। महानगरों में कल कारखानों, वाहनों आदि के शोर से ध्वनि प्रदूषण तथा महानगरों में अनधिकृत बस्तियों के कारण भूमि प्रदूषण होता है। प्रदूषण से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं, जिनमें साँस के रोग, पेट के रोग, पीलिया, मानसिक तनाव, हृदय रोग, एलर्जी, चर्मरोग मुख्य हैं। प्रदूषण को रोकने के लिए सर्वोत्तम उपाय है-वृक्षारोपण तथा वनों की कटाई पर रोक। साथ ही यह भी आवश्यक है कि औदयोगिक इकाइयों को नगरों से दर स्थापित किया जाए। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि खुले स्थानों में कूड़ा आदि फेंककर भूमि को प्रदूषित न करे, कभी हरे-भरे वृक्ष को न काटे तथा अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए।