दहेज़ प्रथा की समस्या
दहेज प्रथा का शुभारंभ एक सात्विक प्रथा के रूप में किया गया था। लाड-प्यार से पाली-पोसी पुत्री ससुराल में जाकर सुख-समृद्धि की वर्षा करे तथा वह समदधि बढ़ाने वाली लक्ष्मी सिदध हो, इसीलिए कन्या के पिता विवाह के समय उसे दहेज के रूप में वस्त्र, धन, बर्तन तथा आभूषण आदि देकर विदा करते थे। उस समय बेटी का खाली हाथ ससराल में जाना अशुभ माना जाता था। आज वर पक्ष कन्या की श्रेष्ठता का आधार कलीनता, शालीनता और सुंदरता को न मानकर दहेज को ही मानने लगा। आज दहेज के कारण योग्य कन्याएँ उपयुक्त वर पाने में असमर्थ रहती है तथा उनके माता-पिता धन के अभाव में उनका विवाह किसी अयोग्य. अशिक्षित तथा दश्चरित्र व्यक्ति से करने में विवश हो जाते हैं। दहेज न लाने के कारण वधुओं को प्रताड़ित किए जाने, उन्हें जलाकर मार डालने के अनेक समाचार आए दिन आते रहते हैं। दहेज प्रथा का खौफ़ इस हद तक बढ़ गया है कि जाँच के बाद कन्या का पता चलते ही माता-पिता भ्रूण हत्या करवा देते हैं। दहेज न दिए जाने पर जब वधुओं को ससराल में प्रताडित किया जाता है, तो अनेक नव-वधुएँ आत्महत्या तक कर लेती हैं। यद्यपि दहेज प्रथा को एक अपराध घोषित कर दिया गया है तथा दहेज विरोधी कानून भी बनाया गया है, पर यह बहुत कारगर सिद्ध नहीं हुआ है। इस प्रथा को रोकने के लिए युवा वर्ग को ही आगे आना होगा तथा दहेज़ माँगने वालों के विरुद्ध बहुत सख्त कदम उठाने होंगे।