भिक्षावृत्ति की समस्या
भिक्षावृत्ति से अभिप्राय है-भीख माँगकर, जीविकोपार्जन करना। भारत में भिक्षावृत्ति में अनेक प्रकार के लोग संलग्न हैं-कुछ तो जन्मजात ही भिखारी होते हैं, जो भीख माँगने के अतिरिक्त कोई अन्य काम करना नहीं चाहते। यदि इन्हें कछ कार्य करने को कहा भी जाए, तो ये तैयार नहीं होते हैं। दूसरे वे लोग होते हैं, जो शारीरिक रूप से अपंग होते हैं। वे दृष्टिहीन या विकलांग होते हैं, जो शारीरिक रूप से कोई कार्य करने में सक्षम ही नहीं होते। तीसरे प्रकार के वे लोग होते हैं, जो अपहरण करके लाए गए होते हैं तथा जिन्हें बचपन से ही इस धंधे में धकेल दिया जाता है, जिनके अंग-भंग करके उनसे भीख मँगवाई जाती है। ये पेशेवर गुंडों या माफ़िया गिरोहों के चक्कर में फंस जाते हैं और जीवन भर भीख ही माँगते हैं। कुछ अन्य लोग परिस्थितिवश इस पेशे में आने को विवश हो जाते हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं आदि के कारण विवश होकर भिक्षावृत्ति का सहारा लेते हैं। भिखारियों में कौन विवशता के कारण भीख मांग रहा है और कौन पेशेवर है, उसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लोग इन पर दया करके इन्हें कुछ-न-कुछ दे ही देते हैं। यद्यपि सरकार ने इस कप्रथा को रोकने के लिए अनेक अभियान शुरू किए, पर सफलता नहीं मिली, क्योंकि ये लोग कुछ काम करके जीवनयापन करने के बजाय, भीख माँगकर ही गुजारा करना बेहतर समझते हैं। भिक्षावृत्ति से हमारे देश का सम्मान बहत घटता है। सरकार तथा समाज सेवी संस्थाओं को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए तथा सरकार को इस प्रथा को कठोरता से समाप्त करने तथा भिक्षावृत्ति में संलग्न लोगों के पुनर्वास के काम पर गंभीरता से क्रियान्वयन करना चाहिए।