शिक्षक दिवस
शिक्षक को राष्ट्र-निर्माता कहा जाता है तथा यह देश की प्रगति का आधार है। प्राचीन काल में गुरु को ईश्वर तुल्य समझा जाता था। कबीर ने तो गुरु को गोविंद से भी बड़ा माना, परंतु आज दुर्भाग्य से शिक्षकों के प्रति विद्यार्थियों में सम्मान की भावना कम होती जा रही है। इसमें शिक्षकों का दृष्टिकोण व्यावसायिक होना भी इसके लिए उत्तरदायी है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन भी एक शिक्षक थे तथा शिक्षक के पद से ही प्रगति करते हुए राष्ट्रपति बने थे। उनके हृदय में शिक्षकों के प्रति बहुत सम्मान था तथा शिक्षा को वे एक सेवा मानते थे। उनकी इच्छा थी कि उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाए। तभी से प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिक्षा-कर्म के प्रति समर्पित लोगों को राज्यों व केंद्र सरकार द्वारा सम्मानित किया जाता है। विद्यालयों में इस दिन अनेक प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शिक्षक दिवस शिक्षकों को प्रेरणा देता है कि शिक्षा को व्यवसाय नहीं, कर्तव्य मानना चाहिए तथा अन्य लोगों को शिक्षकों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए क्योंकि शिक्षक ही ज्ञान देता है। कहा भी गया है-‘श्रद्धावान लभते ज्ञानं’ अर्थात् श्रद्धा रखने वाले ही ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं।