मेरी यादगार रेल-यात्रा
Meri Yadgar Rail Yatra
ग्रीष्म अवकाश के दिनों में हमने अपने ताऊ जी के बड़े लड़के के विवाह में सम्मिलित होने के लिए शिमला जाने का निश्चय किया। यद्यपि जून का महीना था फिर भी पिता जी ने कहा कि एक दो स्वेटर अवश्य रख लेना, क्योंकि शिमला में ठंड पड़ती है। हम 1 जून को प्रात: 4:30 बजे नई दिल्ली स्टेशन की ओर एक टैक्सी में चल पड़े, जहाँ से हमें ‘हिमालय क्वीन’ नाम की गाड़ी पकड़नी थी, जो सुबह 6 बजे कालका के लिए चलती है। रेलवे स्टेशन पर अच्छी खासी भीड़ थी। हम ठीक समय पर पहुँचे, गाड़ी में अपनी सीटें ली और निश्चित समय पर गाड़ी चल दी। लगभग साढ़े छह घंटे में हम कालका पहुँच गए, जहाँ से हमें एक छोटी-सी रेलगाड़ी द्वारा शिमला जाना था। रेलगाड़ी को देखकर मैं हैरान रह गया। मैंने इतने छोटे-छोटे डिब्बे पहली बार देखे थे। ठीक समय पर गाड़ी चल दी। कालका से निकलते ही पहाड़ी दृश्य दिखाई देने लगा। अब पहाड़ी मार्ग प्रारंभ हो गया। गाड़ी की गति अत्यंत धीमी थी। गाड़ी कभी घाटियों से गुजरती तो कभी सुरंगों से। एक के बाद एक सुरंग आती, तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहता। गाड़ी साकार होकर चल रही थी। वह छोटे-छोटे स्टेशनों पर रुकती और चल देती। कहीं-कहीं तो रास्ता इतना घुमावदार था कि रेलगाड़ी के डिब्बे पटरी पर रेंगते नज़र आते थे। प्राकृतिक दृश्यों का ऐसा मनोहारी रूप मैंने पहले कभी न देखा था। जून के महीने में भी वहाँ ठंडी हवा चल रही थी। चारों ओर सुखद हरियाली थी। वृक्षों की पंक्तियाँ, घने जंगल तथा पेड़ों पर खिले फूल आदि बहुत सुंदर लग रहे थे। इस प्रकार पहाड़ी मार्ग पर रेंगती रेलगाड़ी शिमला पहुँच गई। इस रेलगाड़ी की यात्रा ने मुझे प्राकृतिक दृश्यों का जो सौंदर्यमय दृश्य दिखाया, उसे मैं कभी भुला नहीं पाता। जी करता है एक बार फिर शिमला की यात्रा की जाए।