प्रातःकाल का भ्रमण
Pratah Kaal Ka Bhraman
स्वस्थ और शक्तिशाली प्राणी ही इस पृथ्वी पर सभी प्रकार के सुखों का भोग कर सकता है तथा अपने सभी प्रकार के कर्तव्यों को भलीभाँति पूर्ण कर सकता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। अतः शरीर को स्वस्थ बनाए रखना परमावश्यक है। अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के अनेक उपाय हैं-व्यायाम, खेलकूद, यौगिक क्रियाएँ तथा प्रात:भ्रमण। प्रात:भ्रमण भी व्यायाम का ही एक रूप है। प्रात:काल का मौसम अत्यंत सुहावना होता है। प्रातःकालीन वायु शीतल तथा सुगंध भरी होती है। उषा काल की इस मनोरम वेला पर मनुष्य को आलस्य त्याग कर भ्रमण करना चाहिए तथा प्रकृति के निःशुल्क अनुपम देन से लाभ उठाना चाहिए। प्रात:कालीन वेला में न तो प्रदूषण होता है और न ही शोरशराबा। इस समय तो प्राकृतिक छटा बिखरी होती है, जो अत्यंत स्फूर्तिदायक और स्वास्थ्यवर्धक होती है। प्रातःकालीन भ्रमण से शरीर में नए रक्त का संचार होता है, चेहरा प्रदीप्त हो उठता है तथा पाचन शक्ति का विकास होता है। इस समय की शुद्ध वायु का सेवन करने से हृदय और फेफड़ों को बल मिलता है। इस समय नंगे पाँव हरी-हरी घास पर चलने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। बुद्धि विकसित होती है तथा शरीर में ताजगी आती है, आलस्य कोसों दूर भागता है तथा दिन भर कार्य करने की शक्ति आती है। प्रात:काल के समय को भारतीय संस्कृति में ‘ब्रह्म मुहूर्त’ कहा जाता है। ऐसा समझा जाता है कि यह समय देवी-देवताओं के जागरण या भ्रमण का समय होता है। विद्यार्थियों के लिए तो प्रात:भ्रमण करना विशेष उपयोगी है। इससे उनकी स्मरण शक्ति बढ़ती है; अतः स्पष्ट है कि प्रात:भ्रमण शरीर को नीरोग, सुंदर तथा तेजमय रखने की निःशल्क औषधि है।