आतंकवाद की समस्या
आतंकवाद दो शब्दों से मिलकर बना है-आतंक + वाद अर्थात् डर, भय या आतंक पर आधारित सिद्धांत या तरीका। अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए जब लोगों के मन में भय या आतंक का भाव भरकर अपना मतलब निकाला जाता है, तो इसे हम आतंकवाद कहते हैं। विश्व के अधिकांश देश इस समस्या के भुक्तभोगी हैं। आज विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका भी इसकी चपेट में आ चुका है। भारत में कश्मीर, असम, मिजोरम, नागालैंड आदि अनेक प्रांत इसकी चपेट में हैं। हाल ही में दिल्ली में भी हुए बम धमाके तथा संसद पर हुआ हमला आतंकवादियों के देशव्यापी नेटवर्क के साक्षी हैं। गुजरात में अक्षरधाम पर हुआ आतंकवादी हमला यह सिद्ध करता है कि आतंकवादियों का न कोई दीन है, न ही ईमान। आज पूरा कश्मीर आतंकवाद की चपेट में है। उल्फा के नाम से असम की जनता काँपती है, बिहार, झारखंड तथा छत्तीसगढ़ में रणवीर सेना तथा नक्सलवादी आए दिन बेगुनाहों का खून बहाने में ज़रा भी संकोच नहीं करते। आतंकवाद के कारण चारों ओर असुरक्षा तथा भय का वातावरण छा जाता है, कानून और व्यवस्था की स्थिति चरमरा उठती है तथा जान-माल का भीषण विनाश होता है। कश्मीर के आतंकवाद का मुख्य कारण है-पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण तथा सहायता। दूषित राजनीति तथा स्वार्थपूर्ण प्रवृत्तिया भी इसके लिए उत्तरदायी हैं। अनेक सांप्रदायिक संगठन भी अपने स्वार्थों के लिए सीधे-साधे नौजवानों को बहकाकर आतंकवाद की ओर ढकेल देते हैं। अलगाववादी उग्र ताकतें भी इस भयंकर प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं। यद्यपि आतंकवाद को समूल नष्ट करना बहुत कठिन है. फिर भी इसे शांतिपूर्ण प्रयासों से समाप्त नहीं किया जा सकता। इसे समाप्त करने के लिए इनका सिर ही कुचलना होगा तथा आतंकवादियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कठोर-सेकठोर कार्यवाही करने में भी पीछे नहीं रहना होगा।