कक्षा में अध्यापक की भूमिका
भारतीय संस्कृति में गुरु को अत्यंत सम्मानित दर्जा दिया गया है। एक अध्यापक ही बालक की अंतनिहित एवं सुप्त योग्यताओं एवं शक्तियों को जाग्रत करके उसे एक प्रबुद्ध, संस्कारित तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाता है। कक्षा में अध्यापक की भूमिका एक विषय विशेषज्ञ की ही नहीं होती, अपितु एक मार्गदर्शक तथा प्रेरक की भी होती है। एक अध्यापक अपने कालांश में छात्रों को अपने विषय का ज्ञान तो देता ही है, वह संस्कारक्षम वातावरण निर्मित करके छात्रों में नैतिक मूल्यों का पल्लवन एवं संवर्धन भी करता है। एक कुशल एवं कर्तव्यनिष्ठ अध्यापक अपने विषय को कक्षा के स्तर के अनुरूप एवं छात्रों की योग्यता के अनुसार प्रस्तुत करता है तथा विषय से संबंधित ज्ञान को आत्मसात करवाने का प्रयास करता है। वह इस बात का मूल्यांकन भी करता है कि उसने जो कुछ समझाया, उसे छात्रों ने कितना समझा। अध्यापक बाल-मनोविज्ञान से परिचित होता है, इसीलिए सुगमता से छात्रों की अधिगम क्षमता का अनुमान लगा लेता है। कक्षा में अध्यापक छोटे-बड़े, ऊँचनीच, धनी-निर्धन आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करता। उसके लिए तो सभी छात्र समान होते हैं। यदि कोई अध्यापक कक्षा में किसी प्रकार का पक्षपात या भेदभाव करता है, तो वह अध्यापक पद की गरिमा एवं प्रतिष्ठा से च्युत हो जाता है।