पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं
स्वतंत्रता मानव का जन्म सिद्ध अधिकार है। मानव जन्म से लेकर मत्य तक स्वतंत्र रहना चाहता है। पराधीन का आशय है-दूसरों के अधीन होना अर्थात् अपनी रुचि, इच्छा तथा भावना के अनुसार काम न करके किसी अन्य व्यक्ति की इच्छानुसार या आदेशानुसार कार्य करना। पराधीन व्यक्ति जीवनधारी तो होता है, लेकिन वह एक यंत्र की भाँति जीवित रहता है। पराधीनता मानव के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। पराधीन देश की संस्कृति, भाषा, कला शनैः शनैः लुप्त हो जाती है। पराधीनता राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक भी होती है। पराधीनता किसी भी प्रकार की हो राष्ट्र के स्वाभिमान को नष्ट कर देती है तथा व्यक्ति एवं राष्ट्र सम्मानशून्य हो जाते हैं। भारत की पराधीनता के युग में देशभक्तों ने स्वाधीनता के महत्त्व को पहचाना और अंग्रेजों की दासता से मुक्त होने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। हमारे इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण भी हैं, जिनमें दासता से मुक्ति पाने के लिए हमारे वीरों ने अपने सुख-ऐश्वर्यों को त्याग कर स्वतंत्रता के लिए अभावों-कष्टों का जीवन बिताकर देश को आजाद कराया। ऐसा देश, जहाँ के निवासी स्वाधीन होने के लिए अपना लहू बहाने से डरते हैं, कभी स्वाधीन नहीं रह सकते। कहा भी है-“शोणित के बदले अश्रु जहाँ बहता है, वह देश कभी स्वाधीन नहीं रहता है।”