भारतीय समाज में नारी
Women in Indian Society
नारी प्रकृति का एक वरदान है। वह सृष्टि की निर्मात्री, मातृत्व की गरिमा से मंडित, करुणा की देवी, ममता की स्नेहमयी मर्ति तथा त्याग एवं समर्पण की साक्षात् प्रतिमा है। गृह की संचालिका होने के कारण वह गृहलक्ष्मी, बालक की प्रथम शिक्षिका होने के कारण सरस्वती तथा संतान को जन्म देने वाली-‘माँ’ है। इसी कारण प्राचीन काल में नारी को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, तब उसे देवी आदि कहा गया था। मध्य युग में नारी की दशा दयनीय हो गई। वह पहल की दासी बनकर रह गई। जब देश में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ, तो नारी की दशा सुधारने के लिए आवाज उठाई गई। अनेक महापरुषों ने नारी की दशा को सुधारने का आह्वान किया। आजादी के बाद तो भारत की नारी परुष के समकक्ष है। जीवन के हर क्षेत्र में वह पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। अभी भी भारतीय गाँवों में नारी की दशा अच्छी नहीं है, पर धीरे-धीरे शिक्षा के प्रचार-प्रसार से स्थिति में बदलाव आ रहा है।