आचरण का प्रभाव
Aacharan ka Prabhav
एक बार एक स्त्री महाराष्ट्र के महान् संत ज्ञानेश्वर महाराज के पास अपने छोटे पुत्र को लेकर आई और उसने कहा, “महाराज, इसे अपच की बीमारी है। मैंने इसे कई दवाइयाँ दीं, किन्तु उनका कुछ भी असर नहीं हुआ।” ज्ञानेश्वर महाराज ने उससे कहा, “बहन, इसे कल ले आना।” दूसरे दिन जब वह लड़के को लेकर उनके पास गई, तो उन्होंने लड़के से पूछा, “तू ज्यादा गुड़ खाता है न?” उसके द्वारा “हाँ” कहने पर उन्होंने कहा, “तू गुड़ खाना बंद कर दे, तू जल्द ही अच्छा हो जाएगा।” बच्चे ने स्वीकृति में सिर हिला दिया।
किन्तु उसकी माँ सोचने लगी कि यह बात महाराज ने कल ही क्यों नहीं बता दी। उन्होंने आज नाहक ही बुलाया। उससे न रहा गया और उसने पूछ ही लिया, “महाराज! यह बात तो आप कल ही बता सकते थे?” संत बोले, “बहन! कल जब तुम आई थीं, तो मेरे सामने ही गुड़ रखा हुआ था। यदि मैंने इसे गुड़ खाने से कल मना किया होता, तो यह सोचता कि यह खुद तो गुड़ खाता है और मुझे खाने के लिए मना करता है। इसी कारण मैंने स्वयं गुड़ खाना बंद कर दिया है और अब इस स्थिति में हूँ कि इसे भी गुड़ खाने को मना कर सकता हूँ।” यह सुन स्त्री ने उनके पैर छुए और संतुष्ट हो चली गई।