अपशब्दों का परिणाम
Apshabdo ka Parinam
महाराष्ट्र की संत बहिनाबाई का विवाह अल्पायु में ही शिवापुर के प्रौढ़ जोशी के साथ हुआ था, जो कि बड़ा ही नास्तिक था, जबकि बहिनाबाई हमेशा धर्म-चिंतन में लीन रहती थीं। एक बार विट्ठल-मंदिर में हरिभक्तपरायण जयरामस्वामी का कीर्तन था । बहिनाबाई भी कीर्तन सुनने गईं। उसके पीछे-पीछे उसका बछड़ा भी वहाँ आ गया और एक कोने में चुपचाप खड़ा हो गया, मानो वह भी कीर्तन श्रवण कर रहा हो। उसे आया देख कुछ श्रोताओं ने उसे मारते हुए भगाना चाहा, किन्तु वह टस से मस न हुआ। उसे मारते देख बहिनाबाई को बड़ा दुःख हुआ और उसने लोगों को मारने से रोका। वे बोलीं, “यह बेचारा भगवनाम का श्रवण कर रहा है, फिर इसे क्यों मार रहे हों ? इसके आने से कीर्तन में कोई व्यवधान तो नहीं आ रहा है।” लोगों ने उसकी बात अनसुनी कर दी और वे बछड़े को बेरहमी से पीटने लगे। इससे बहिनाबाई की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। तब जयराम स्वामी वहाँ आए और उन्होंने बछड़े पर हाथ फेरते हुए लोगों से कहा, “यह कोई पूर्वजन्म का धर्मात्मा मालूम होता है, इसलिए इसे भी कीर्तन सुनने दो।” उन्होंने बहिनाबाई के मस्तक पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद दिया। लोग शांत हो गए और कीर्तन फिर से चालू गया।
दूसरे दिन बहिनाबाई के पति को रात्रि की घटना मालूम हुई, तो उसे यह सुन बड़ा गुस्सा आया कि उसकी पत्नी ने अपने मस्तक पर एक परपुरुष को हाथ फेरने दिया। वह उसे जोर-जोर से पीटने लगा। जब मकान मालिक को बात मालूम हुई, तब कहीं उसे रोका जा सका। कुछ दिनों बाद बछड़े की मृत्यु हो गई। बहिना को बड़ा दुःख हुआ और वह शोक मनाने लगी। रात्रि को स्वप्न में संत तुकाराम ने उसे दर्शन दिया और ‘गीता’ देते हुए मंत्र दिया और कहा, “कष्ट-क्लेशों के बाद ही परमार्थ की प्राप्ति होती है।” बहिनाबाई ने इसे तिथि व दिन सहित निम्न श्लोक में इस प्रकार स्वीकार किया है-
ठेऊनिया करमस्तकी बोलला, मंत्र सांगितला कर्णरंध्री ।
कार्तिकात वद्य पंचमी रविवार, स्वप्नीचा विचार गुरुकृपा ॥
बात जब उसके पति को मालूम हुई, तो उसने इसे ढोंग की संज्ञा दी और उसने तुकाराम के प्रति अपशब्द कहे। इतना ही नहीं, उसने पत्नी का त्याग करने की तैयारी की। वह ज्योंही सामान बाँधकर बाहर जाने लगा कि उसके सारे शरीर में असहनीय वेदना होने लगी। वह धूल में लोटने लगा, किन्तु वेदना रुक नहीं रही थी। तब वह सोचने लगा ऐसा क्यों हो रहा है और उसे ख्याल आया कि उसने अपनी पत्नी को ही तंग नहीं किया, बल्कि तुकाराम-जैसे महात्मा के प्रति अपशब्द भी कहे थे। उसने मन-ही-मन तुकारामजी से क्षमा माँगी, तब कहीं वेदना शांत हुई । वह अपनी पत्नी के पास गया और उससे भी क्षमा माँगी और उसे ‘गुरु’ कहकर पुकारा। अब उसका कायापलट हो चुका था। उसने बहिना को फिर कभी तंग नहीं किया।