जब भी सोचो बड़ा सोचो
किसी गाँव में एक गरीब लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। बेचारे परिवार वालों ने बड़ी मुश्किल से उसे पढ़ाया ग्रेजुएशन कराया लेकिन देश में बढ़ती बेरोजगारी की वजह से बेचारे को नौकरी नहीं मिली।
घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं बन पाती थी। एक बार वह लड़का ट्रेन से शहर में इंटरव्यू देने जा रहा था। उसके पास खाने को कुछ खास नहीं था। एक छोटे से टिफिन में चार रोटी थीं और सब्जी नहीं।
ट्रेन अपनी रफ़्तार से जा रही थी। लड़के को भूख लगी तो उसने अपना टिफिन खोला जिसमें केवल रोटियां थीं। उसने टिफिन से रोटियां बाहर निकालीं और रोटी का टुकड़ा तोड़कर टिफिन में ऐसे अंदर डाला जैसे उस टिफिन में सब्जी है और फिर वो रोटी का टुकड़ा खाने लगा। पास में एक आदमी ने देखा तो उसे बड़ा अजीब लगा।
उस लड़के ने फिर एक टुकड़ा रोटी का लेकर टिफिन में ऐसे डाला जैसे टिफिन में सब्जी है और फिर रोटी खाने लगा। अब कुछ लोग उसकी इस हरकत को देख कर हैरान हो रहे थे कि टिफिन तो खाली है लेकिन फिर भी ये बार बार ऐसे क्यों कर रहा है जैसे सब्जी से रोटी खा रहा हो।
इतने में एक आदमी से रहा नहीं गया तो उस आदमी ने….
उस लड़के से पूछ ही लिया कि- भईया आपका टिफिन तो खाली है फिर टुकड़ा डालकर ऐसे क्यों खा रहे हो ?
वो लड़का बोला मुझे पता है कि ये टिफिन खाली है लेकिन मैंने ये सोचा हुआ है कि इस टिफिन में अचार है और मैं अचार से रोटी खा रहा हूँ।
फिर उस आदमी ने पूछा कि ऐसे करने से क्या आपको अचार का स्वाद आ रहा है,
तो वो लड़का बोला-हाँ मुझे अचार का स्वाद आ रहा है, मुझे ये रोटी स्वाटिष्ट लग रही है क्योंकि सोचने से ही मुझे अचार का स्वाद आ रहा है।
इतने में पीछे से किसी व्यक्ति ने आवाज लगायी- अरे भाई जब सोचना ही था तो मटर पनीर या शाही पनीर सोचते, कम से कम पनीर का तो स्वाद आ जाता, ये सुनते ही आस पास बैठे सभी यात्री हंस पड़े
सही ही तो कहा उस व्यक्ति ने, अरे जब सोचना ही है तो बड़ा सोचो, छोटा सोच कर क्या फायदा ?
शिक्षा/Moral:- इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि जब भी सोचो बड़ा सोचो क्योंकि बड़ा सोचने वालों के सपने पूरे हुआ करते हैं। हम रोजाना बहुत सी बातें सीखते हैं, पढ़ते हैं, देखते हैं और सोचते हैं| पर जब सोचना ही है तो कुछ बड़ा ही सोचो।