बिना तेल की बाती
Bina tel ki bati
साईंबाबा शिरडी में एक मस्जिद में रहने लगे थे। उसका नाम उन्होंने ‘द्वारिकामाई’ रखा और वे वहीं आत्म-साधना एवं भगवद्भजन में लीन रहने लगे। भिक्षा माँगना और मस्जिद के सामने के आम्रवृक्ष के नीचे भजन करना, यह उनके दैनंदिन कार्यक्रम का अंग बन गया था। उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और वे चीथड़े पहनते थे। लोग उन्हें इस अवस्था में देखकर सनकी और पागल समझने लगे थे। इसी कारण उनके द्वारा भीख माँगने पर वे दरवाजा बंद कर लेते थे।
एक बार उन्हें दीया जलाना था और तेल खत्म हो गया था। उन्होंने कई घरों में जाकर थोड़ा-सा तेल देने की प्रार्थना की, किन्तु लोगों ने उनकी प्रार्थना अनसुनी कर दी। जब बाबा ने देखा कि लोगों ने तेल न देने का ही ठान लिया है, तो उन्होंने पानी डालकर ही दीया जलाया और लोग यह देखकर दंग रह गए कि वह दीया पानी के सहारे बराबर जल रहा है। दीया रात भर जलता रहा। अब लोगों को प्रतीति हुई कि अवश्य ही यह कोई पहुँचा हुआ महात्मा है। उनका निरादर किए जाने का उन लोगों को पश्चात्ताप हुआ और बाबा के चरणों पर गिरकर उन्होंने क्षमा-याचना की।