बुरी संगति
Buri Sangati
हमारे धर्मग्रन्थों में चरित्र की व्याख्या को अच्छा स्थान मिला है। अंग्रेजी साहित्य में चरित्र का पतन सबसे बुरा बताया गया है। उसकी हानि को सबसे बडी हानि कहा गया है। चरित्र को बनाने में बालक की संगति का प्रभाव सब से अधिक होता है। यदि संगत अच्छी हो तो बालक में सद्गुणों का प्रादुर्भाव होता है। इसके विपरीत बुरी संगति उसमे दुर्गुणों का समावेश करती है ।
इसी तथ्य को प्रभावित करती यह कथा प्रस्तुत है।
एक नगर में एक नी व्यक्ति रहता था। उसका एक बेटा था। स्वाभाविक रूप से चल उनका लाडला पुत्र था। वह पढ़ाई में होशियार था और हमेशा प्रथम रहता। उसके अध्यापक भी उसकी तारीफ करते। दुर्भाग्यवश, उसकी संगत बुरे लड़कों से हो गई। उसका ध्यान अब गंदी बातों में लग गया। अब वह न समय पर स्कूल जाता, न ही पाठ याद करता। उसकी शिकायत उसके पिता से की गई। पिता को चिन्ता हुई। उन्होंने पुषको समझाने के लिए एक तरकीब सोची। वह बाजार से एक आम की टोकरी खरीद लाए। उन्होंने एक सड़ा गला आम पुत्र को देकर कहा, इसे ठस आम की टोकरी में रख दी। बेटे ने ऐसा ही किया। सुबह पिता ने पुत्र से वह टोकरी उठा लाने को कहा। टोकरी के सारे आम सड़ चुके थे।
बेटे ने आश्चर्य से पूछा-पिता जी, ये सारे आम कैसे सड़ गए? पिता ने कहा-बेटे! एक राड़े आम से ये सारे आम खराब हो गए हैं। उसी तरह बुरे बच्चों की संगति से अच्छे बच्चों के सदगुण भी नष्ट हो जाया करते हैं । अत: तुम भी अच्छे बच्चों की संगति करो। अपने भीतर सदा सदगुणों की महक पाओगे। पुत्र पर पिता की इन बातों का अच्छा प्रभाव पड़ा। उसने बुरे बच्चों की संगति छोड़ दी और दिल लगाकर पढ़ने लगा और एक बार फिर सबकी आँखों का तारा बन गया।
शिक्षा-बुरी संगत से बचकर रहो।