चक्रवर्ती कौन?
Chakravarti Kaun?
पुष्य नामक एक प्रसिद्ध सामुद्रिक था। उसने मार्ग के चरणचिह्न देखकर कहा, “ये चरणचिह्न जिस व्यक्ति के हैं, वह कोई साधारण मनुष्य नहीं है, वह चक्रवर्ती होगा।” लोगों को यकीन नहीं हुआ, भला कोई नंगे पैर सड़क पर घूमने वाला व्यक्ति चक्रवर्ती हो सकता है! पुष्य ने कहा, “यदि यह गलत होगा, तो सामुद्रिक शास्त्र गलत होगा।”
सत्य बात मालूम करने के लिए वह चरणचिह्नों के पीछे-पीछे चला। जल्दी ही उसे ध्यान में मग्न एक भिक्षु दिखाई दिया। वह व्यक्ति और कोई नहीं, भगवान् महावीर थे। वे जब ध्यान से विरत हुए, तो उसने प्रश्न किया, “भंते आप अकेले हैं ?”
भगवान् ने जवाब दिया, “इस दुनिया में जो आता है, वह अकेले ही आता है और अकेले ही जाता है, उसका साथ दूसरा कोई नहीं देता।” “नहीं, भंते! मैं तत्त्व की नहीं, व्यवहार की बात कर रहा हूँ।”
“व्यवहार की भूमिका पर मैं अकेला नहीं हूँ।”
“भंते! आप परिवारविहीन होकर अकेले कैसे नहीं हैं?” “मेरा परिवार मेरे साथ है।”
“वह कहाँ है, भंते!”
“संवर (निर्विकल्प ध्यान) मेरे पिता हैं, अहिंसा मेरी माता है, ब्रह्मचर्य भाई, अनासक्ति बहिन, शांति प्रिया, विवेक पुत्र, क्षमा पुत्री, उपशम घर, सत्य मित्रवर्ग-ऐसा पूरा परिवार मेरे साथ निरंतर घूम रहा है, फिर मैं अकेला कैसे हूँ?”
“भंते! मैं आश्चर्यचकित हूँ कि आपके शरीर के लक्षण आपके चक्रवर्ती होने की सूचना देते हैं और आपकी चर्यासाधारण व्यक्ति होने की सूचना दे रही है।”
“अच्छा! बताओ, चक्रवर्ती कौन होता है?”
“भंते! जिसके आगे-आगे चक्र चलता है ।” “चक्रवर्ती कौन होता है?”
“भंते! जिसके पास बारह योजन में फैली सेना को त्राण देने वाला छत्ररत्न होता है।”
“चक्रवती कौन होता है?”
“भंते! जिसके पास चर्मरत्न होता है, जिससे प्रायः बोया हुआ बीज शाम को पक जाता है।”
“तुम ऊपर, नीचे, तिरछे कहीं भी देखो, धर्म का चक्र मेरे आगे चल रहा है। आचार मेरा छत्ररत्न है, जो समूची मानव-जाति को एक साथ त्राण देने में समर्थ है। भावना-योग मेरा चर्मरत्न है, जिसमें जिस क्षण बीजा बोया जाता है, उसी क्षण वह पक जाता है। क्या मैं चक्रवर्ती नहीं हूँ? क्या तुम्हारे सामुद्रिक शास्त्र में धर्म-चक्रवर्ती का अस्तित्व नहीं है?”
पुष्य ने कहा, “भंते मेरा संदेह निवृत हो गया। अब मैं स्वस्थ होकर जा रहा हूँ।”
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