दुर्बल को न सताइए
Durlab ko na sataiye
बगदाद का बादशाह हारूँ-अल-रशीद ने प्रजा पर ‘नमक-कर’ लगाया और नगर में डौंडी पिटवाई कि हर नागरिक को अपनी आय की पच्चीस प्रतिशत राशि नमक-कर के रूप में बादशाह के खजाने में जमा करनी होगी। नगर में हाहाकार मच गया, मगर बादशाह के आदेशों का उल्लंघन करने की किसी में हिम्मत नहीं थी।
दूसरे ही दिन एक गरीब किसान बादशाह के पास आया और उसने विनम्र शब्दों में कहा, “जहाँपनाह, धृष्टता क्षमा करें, यदि आप नमक-कर लगाने का प्रयोजन बता सकें, तो मेरा समाधान हो सकता है।”
“अवश्य,” बादशाह बोला, “सुनो, मेरी प्रजा मेरे बच्चों जैसी है। मैं: तुम सबकी रक्षा एक पिता के समान करता हूँ। तुम पर जब भी कोई आपदा आती है, तो मैं चिंतित हो जाता हूँ। तुम्हारी भूख का शमन करने के लिए तुम्हारे भोजन की व्यवस्था करता हूँ। यानी तुम्हारी सुख-सुविधा का मैं बराबर ख्याल करता हूँ और बेटे, इन सब बातों के लिए पैसों की आवश्यकता होती है या नहीं? बस इसीलिए मैं तुमसे अल्प मात्रा में नमक-कर ले रहा हूँ। क्यों बात ठीक है न?”
किसान बोला, “जहाँपनाह, आप ठीक कहते हैं। मुझे विश्वास हो गया है कि आप जो यह कर लगा रहे हैं, वह हमारी भलाई के लिए ही है। मुझे भी इससे सीख मिल गई है। अब मैं भी इसका प्रयोग अपने घर में करूँगा।”
“वह कैसे ?” बादशाह ने पूछा किसान ने जवाब दिया, “गरीबपरवर, मैंने एक कुत्ता पाल रखा है। मुझे उसका बराबर ख्याल रहता है। जब भी उसे चोट वगैरह लगती है, मैं अपने बच्चे की तरह उसकी सेवा-शुश्रूषा करता हूँ; भूख लगती है तो उसे रोटी देता हूँ। मगर जब कल सुबह भूख लगने पर वह मेरे तलुवे चाटेगा, तो मैं उससे कहूँगा- ‘मेरे बेटे, तू भूखा है इसका मुझे एहसास है। ठहर, मैं इसका इंतजाम करता हूँ।’ और फिर एक छुरी लाकर उससे उसकी पूँछ का एक छोटा टुकड़ा काटकर उसके सामने रखूँगा और कहूँगा-‘मेरे बेटे, मैं तेरी रक्षा अपने बच्चों की तरह करता हूँ। मुझे तेरी भलाई का हमेशा ख्याल रहता है, इसीलिए तेरी पूँछ का एक छोटा-सा टुकड़ा काटकर तुझे दिया है। तू इसे खा और संतुष्ट हो जा।’
यह सुनते ही बादशाह को अपनी गलती महसूस हुई और उसने दूसरे दिन ही नमक-कर उठा लिया।