जैसे को तैसा
Jaise ko Taisa
कहानी # 1
नदी के किनारे के जंगल में एक ऊँट रहता था। वह बहुत ही सीधा-साधा था। एक दिन उसकी भेंट एक धूर्त सियार से हो गई। सियार ने ऊँट से मित्रता कर ली और उसके साथ ही रहने लगा। एक दिन सियार ने ऊँट से कहा, ऊँट भाई ! चलिए मक्का खाने के लिए नदी के उस पार चलते हैं। ऊँट ने कहा, हमें चोरी नहीं करना चाहिए। इसपर सियार ने कहा, चोरी करने के लिए कौन कहता है? मक्के का खेत तो मेरे एक मित्र का ही है। ऊँट मान गया और सियार को अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार किया। मक्के के खेत में पहुँकर सियार जल्दी-जल्दी मक्का खाने लगा। जब सियार का पेट भर गया तो उसने ऊँट से कहा, ऊँट भाई! मुझे हुँहुँआरी (हुँआ-हुँआ करने का मन) हो रही है। ऊँट के मना करने के बाद भी सियार हुँआ-हुँआ करने लगा। हुँआ-हुँआ की आवाज सुनकर किसान खेत में दौड़ा आया। सियार तो भग गया पर उसने ऊँट की बहुत पिटाई की। सियार भागकर नदी किनारे आया और नदी पार करने के लिए ऊँट का इंतजार करने लगा। थोड़ी ही देर में लँगड़ाते-लँगड़ाते ऊँट भी नदी के किनारे पहुँचा। नदी पार करने के लिए सियार ऊँट की पीठ पर सवार हो गया। जब ऊँट सियार को लेकर नदी के बीच में पहुँचा तो बोला, सियार भाई! मुझे लोटवाँस (लोटने की इच्छा) लग रही है। इसपर सियार ने कहा, पहले आप मुझे उस पार कर दीजिए और फिर लोटिए। सियार की बातों का ऊँट पर कोई असर नहीं हुआ और वह लोटने लगा। सियार नदी में डूब-डूबकर अधमरा हो गया और किसी प्रकार जान बचाकर इस पार आया। जब यह बात जंगली जानवरों ने सुनी तो कहा, जैसे को तैसा।
कहानी # 2
जैसे को तैसा
Jaise ko Taisa
यह एक सर्वकालीन सत्य है कि हम अपने जीवन में दूसरों से जिस व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं अथवा उसकी कल्पना करते हैं. वही व्यवहार हमें दूसरों के साथ भी करना चाहिए। अपने आप को अधिक चालाक समझने वाले लोग ‘जैसे को तैसा’ की तर्ज पर धोखा खा जाते हैं और उनकी चालाकी ही उनके लिए मुसीबत खड़ी कर देती है। प्रस्तुत है, इसी तथ्य को साबित करती हुई यह कथा :
एक बार एक बुद्धिमान यात्री पर्वत की सैर करने गया। घूमते-घूमते उसे अन्धेरा हो गया। काफी ठंड पड़ रही थी और वर्षा भी हो रही थी। ऐसे में वह यात्री अपने ठहरने की जगह तलाशने लगा। उसे दूर प्रकाश दिखाई दिया। वहां शायद कोई स्थान मिल जाए यह सोचकर यात्री उस ओर बढ़ गया। वह एक सराय थी। यात्री ने वहां पहुँचकर दरवाजा खटखटाया । अन्दर से चौकीदार बोला, ‘यह सराय तो गर्मियों में खुलती है। इधर कुछ नहीं है।’ यात्री बोला, ‘देखिए, मैं रास्ता भटक गया हूँ। रात भर ठहरने को जगह चाहिए।’ चौकीदार बोला, ‘द्वार को ताला लगा है। उसकी चाबी सोने की है जो गुम हो गई है, तुम्हारे पास हो तो इधर फेंक दो, दरवाजा खोल देता हूँ। बुद्धिमान यात्री उसका आशय समझ गया। उसने लालची चौकीदार को सबक सिखाने की ठान ली। उसने जेब से कुछ सिक्के निकालकर फेंक दिये। चौकीदार ने दरवाजा खोल दिया। यात्री अन्दर आ गया। उसने कहा, ‘बाहर मेरा सूटकेस पड़ा है, उसे उठा लाओ।’ चौकीदार ज्यों ही बाहर गया, यात्री ने द्वार बंद कर दिया। चौकीदार चिल्लाया, ‘बारिश बहत तेज है, दरवाजा खोलो।’ यात्री ने हंसते हुए कहा, ‘सोने की चाबी दोगे तो खोल देंगे।’ चौकीदार को सिक्के वापस फेंकने पड़े। यात्री ने दरवाजा खोला तो चौकीदार उससे नज़रें न मिला पा रहा था। यात्री ने वह रात आराम से सराय में बिताई और सुबह बारिश रुकते ही निकल पड़ा।
शिक्षा-जैसे को तैसा।