चालाक लोमड़ी
किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी जो बहुत ही धूर्त और चालाक थी. जंगल के छोटे मोटे जानवरों को वह अपनी मीठी बातों में फंसा कर उन पर शिकार करने का प्रयत्न करती. कभी-कभी तो उसकी चालाकी समझकर कुछ जानवर भाग निकलते और कभी कभी कुछ बेचारे उसका शिकार बनते.
एक दिन गदहा कहीं से घूमता फिरता उस जंगल में पहुंचा. लोमड़ी ने सोचा कि कहीं ऐसा न हो यह गदहा जंगल के छोटे मोटे जानवरों को मेरी चालाकियां समझा दे, तो हम कहीं के भी नहीं रहेंगे.
अतः उसने सोचा कि क्यों न गदहा से भी दोस्ती का हाथ बढ़ा कर फिर उस का शिकार कर दिया जाय. वह बहुत ही विनम्र भाव में बोली, कि भाई तुम्हारा नाम क्या है, और कहाँ से और किस प्रयोजन से यहाँ आना हुआ. गदहे ने अपना परिचय बता दिया.
लोमड़ी ने कहा- बड़ा अच्छा हुआ तुम आ गए अब हम तुम एक मित्र की भांति रहेंगे. गधा बिचारा सीधा सादा था उसे छल प्रपंच की बातें आती नहीं थी वह क्या समझता कि लोमड़ी के मन में क्या पक रहा है .
एक दिन लोमड़ी कुछ उदास हो कर बैठी.
गदहे ने उसे चिन्तित देखा तो पूछा- लोमड़ी बहन! तुम इतनी उदास क्यों हो. लोमड़ी ने और भी उदास मुद्रा बनाकर कहा क्या बताऊं भाई! मैंने एक पाप किया है उसी की याद करके मुझे पश्चाताप हो रहा है.
लोमड़ी ने आंखों में आंसू भरकर कहा- कुछ दिन पहले मैं और मेरा लोमड़ सुख से रहते थे, एक दिन हम दोनों में एक बात को लेकर बड़ी जोर से झगड़ा हो गया. लोमड़ क्रोध में घर से बाहर निकल गया कुछ देर तो मैं घर में रही. मैंने सोचा कि क्रोध शांत होने पर लोमड़ घर लौट आएगा किंतु वह तो नहीं लौटा लेकिन शेर की दहाड़ सुनाई पड़ने लगी.
मैं भाग कर गई कि कहीं शेर मेरे लोमड़ को मार न डाले. किंतु मेरे जाते जाते शेर मेरे लोमड़ का शिकार कर चुका था. मुझे भी घर जाने की इच्छा नहीं हुई तब से मैं यहीं पड़ी रहती हूं.
इतना कहकर लोमड़ी रोने लगी. मैं यही सोचती हूं कि मैंने लड़ाई क्यों की. गदहे ने उसकी बातों पर विश्वास कर लिया और बोला मत दुखी हो बहन ! गल्ती हो ही जाया करती है. तुमने जान बूझ कर तो कुछ किया नहीं |
लोमड़ी ने कहा- भाई तुमने भी कोई पाप किया है कभी तो मुझे बताओ.
गदहे ने कहा- हां बहन ! एक बार मुझसे भी गल्ती हो गई थी. मैं भी एक धोबी का नौकर था. धोबी रोज कपड़ों की लादी मुझ पर लादता था. और घर से घाट और घाट से घर ले जाया करता था.| उसके एवज में मुझे घांस पानी मिलता था. एक दिन धोबी के लड़के ने मुझ पर लादी लाद दी और खुद भी बैठकर चला घात की ओर.
उस दिन मेरी इच्छा चलने की नहीं हो रही थी. मैं अड़ गया. लड़के ने पुचकारा किंतु मई अड़ा रहा वह गुस्से में उतर कर मुझे मारने चला. मैंने वह पैर फटकारा कि उसकी लादी भी गिर गई और उसे भी चोट आ गई और मैं वहां से चल दिया. मैं भी यही सोचता हूं कि मैंने वह गल्ती क्यों की.
लोमड़ी ने गुस्से में भर के कहा- नमकहराम जिसका खाता रहा उसी का काम करने में आनाकानी की तेरी शक्ल भी देखना पाप है. कह कर वह झपटने को हुई. पहले तो गदहा यह न समझ पाया कि लोमड़ी क्यों एक दम बदल गई. वह रेंकता हुआ भागा लोमड़ी ने उसका पीछा किया.
गदहे का रेंकना सुनकर जंगल के और जानवर आए. जब लोमड़ी और उसको भागते देखा तो यह कहते हुए भागे कि अरे! आज लोमड़ी ने अपने लोमड़ की मनगढ़ंत कहानी सुना कर गदहे को अपना शिकार बना लिया.
गदहे का क्या हुआ यह तो याद नहीं है किंतु लोमड़ी पर से सभी जानवरों का विश्वास उठ गया. वह एक अकेली और निरीह सी घूमने लगी. कहानी समझने की है|
झूठ बोलकर धोखा दिया जा सकता है किंतु यदि झूठ खुल गया तो उस पर से सब का विश्वास सदा के लिए उठ जाता है.