सहज पके सो मीठा होए
Sahaj Pake So Mitha Hoye
विश्व का यह सर्वकालीन सत्य है कि बीज बोते ही पौधा नहीं उग जाता, न ही पौधा उगते ही उसमें फल आ जाते हैं। यही तथ्य हमारे जीवन पर भी हूबहू लागू होता है। मनुष्य किसी काम में परिश्रम करता है तो उसे सफलता भी एकाएक नहीं मिल जाती वरन उसकी लगन को ही फल लगता है। लगातार कार्यशील मनुष्य के भाग्य में मीठे फल ही होते हैं। वह धीरे-धीरे मंज़िल की ओर बढ़कर सफलता पा लेता है।
एक खरगोश एवं कछुए में गहरी दोस्ती थी। खरगोश को अपनी तेज़ चाल पर घमंड था और वह कछुए की धीमी चाल का उपहास उड़ाया करता था। एक दिन दोनों ने दौड़ लगाने का फैसला किया। एक मील पर पड़ी चट्टान को लक्ष्य माना गया। स्पष्ट था कि जो तेज़ गति से पहले वहां पहुँचेगा, उसे जीता माना जाएगा।
दौड़ प्रारम्भ हुई। खरगोश तेज गति से भागता हुआ कछुए से कहीं आगे जा निकला परन्तु कछुआ धीरे-धीरे लक्ष्य की ओर बढ़ता रहा।
खरगोश ने सोचा-‘अभी कछुआ बहुत पीछे ही होगा, यहां तक आने में कई घण्टे लगा देगा, क्यों न कुछ देर सुस्ता लूं।’ यह विचार कर वह ठण्डी छाया में लेट गया , तथा गहरी नींद में सो गया।
कुछ देर बाद मन्द गति से चल रहा कछुआ वहां पहुंच गया और खरगोश को सोया पड़ा देख बड़ा खुश हुआ और लक्ष्य की ओर बढ़ता रहा।
कुछ देर बाद खरगोश की नींद टूटी तो वह हड़बड़ा कर उठा। भागता हुआ चट्टान की ओर लपका। वहां पहुँचकर उसने देखा, कछुआ उससे पहले वहां पहुंच गया था। वह हैरान हुआ और उसे खुद पर क्रोध भी बहुत आया परन्तु अब बाजी कछुआ जीत चुका था।
शिक्षा-अभिमानी का सिर नीचा।