चूहा और साधु
किसी गाँव में एक साधु रहता था| वह साधु एक मंदिर में रहता था और लोगों की सेवा करता था| भिक्षा मांगकर जो कुछ भी उसे मिलता वह उसे उन लोगों को दान कर देता जो मंदिर साफ़ करने में उसका सहयोग करते थे|
उस मंदिर में एक चूहा भी रहता था| वह चूहा अक्सर उस साधु का रखा हुआ अन्न खा जाता था| साधु ने चूहे को कई बार भगाने की कोशिश की लेकिन वह चकमा देकर छिप जाता|
साधु ने उस चूहे को पकड़ने की काफी कोशिश की लेकिन वह हरबार असफल रहता| साधु एकदिन परेशान होकर अपने एक मित्र के पास गया|
उसके मित्र ने उसे एक योजना बताई कि चूहे ने मंदिर में अपना कहीं बिल बना रखा होगा और वह वहां अपना सारा खाना जमा करता होगा| अगर उसके बिल तक पहुंचकर सारा खाना निकाल लिया जाये तो चूहा खुद ही कमजोर होकर मर जायेगा|
अब साधु और उसके मित्र ने जहाँ तहाँ बिल खोजना शुरू कर दिया| अंततः उनको बिल मिल ही गया जिसमें चूहे ने खूब सारा अन्न चुराकर इकठ्ठा कर रखा था| बिल खोदकर सारा अन्न बाहर निकाल दिया गया|
अब चूहे को खाना नहीं मिला तो वह कमजोर हो गया और साधु ने अपनी छड़ी से कमजोर चूहे पर हमला किया| अब चूहा डर कर भाग खड़ा हुआ और फिर कभी मंदिर में नहीं आया|
शिक्षा/Moral:- अपने शत्रु को हराना है तो पहले उसकी शक्तियों पर हमला कर दो| शक्तियां खत्म तो शत्रु स्वयं कमजोर पड़ जायेगा|