स्वावलम्बन की भावना
Swavlamban ki Bhawna
अपने जीवन में वही व्यक्ति सफल होता है, जो अपने कार्य के लिए किसी दूसरे का मुखापेक्षी नहीं होता। वह अपने हाथ से कार्य कर सकता है,। वस्तुत: ऐसी ही हस्तियां महानता के सर्वोच्च शिखर पर आरुढ़ होती हैं। प्रस्तुत कहानी का यही उद्देश्य है।
एक बार रेलगाड़ी एक स्टेशन पर रुकी। उसमें से यात्रियों की भीड़ उतरने लगी। एक नवयुवक के हाथ में एक सूटकेस था। वह सूट बूट पहने था। वह भी गाड़ी से उतरा। वह नवयुवक उस सूटकेस को किसी कुली को देना चाहता था। इसलिए वह कुली कुली पुकारने लगा लेकिन जब कुली नहीं आया तो वह निराश हो गया। तभी एक कुर्ता पजामा पहने एक युवक वहां आया। उस व्यक्ति ने उसका सूटकेस उठा लिया और चल पड़ा। घर पहुँचकर जब उस युवक ने उस व्यक्ति को मजदूरी देनी चाही तो उसने मना कर दिया।
दूसरे दिन वह युवक अपने विद्यालय में ईश्वर चन्द विद्यासागर का भाषण सुनने गया। उसने देखा, वही व्यक्ति मंच से भाषण दे रहा है जिसने उसका सूटकेस उठाया था। वह युवक उनके भाषण से बहुत प्रभावित हुआ। वह ईश्वर चन्द विद्यासागर के निकट गया और उनसे अपने बर्ताव के लिए क्षमा मांगने लगा। उन्होंने उसे माफ किया और आगे के लिए अपना काम स्वयं करने की प्रेरणा ली।
शिक्षा–स्वावलम्बन की भावना श्रेष्ठ है।