योगी क्यों रोया फिर क्यों हँसा
कलिंग देश में शोभावती नाम का एक नगर है। उसमें राजा प्रद्ययुम्न राज करता था। उसी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था, जिसके देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था।
जब देवसोम सोलह बरस का हुआ और सारी विद्याएँ सीख चुका तो एक दिन दुर्भाग्य से वह मर गया।
बूढ़े माँ-बाप बड़े दु:खी हुए। चारों ओर शोक छा गया। जब लोग उसे लेकर श्मशान में पहुँचे तो रोने-पीटने की आवाज़ सुनकर एक योगी अपनी कुटिया में से निकलकर आया।
पहले तो वह खूब ज़ोर से रोया, फिर खूब हँसा, फिर योग-बल से अपना शरीर छोड़ कर उस लड़के के शरीर में घुस गया। लड़का उठ खड़ा हुआ। उसे जीता देखकर सब बड़े खुश हुए।
फिर वह लड़का वही तपस्या करने लग गया।
इतना कहकर बेताल बोला- “राजन् विक्रम, यह बताओ कि वह योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा? तुम्हें याद है न यदि तू उत्तर जानते हुए भी नहीं बताएगा तो तेरा सिर फट जाएगा।”
विक्रम को इसका जबाव पता था उसने कहा- “इसमें क्या बात है! वह रोया इसलिए कि जिस शरीर को उसके माँ-बाप ने पाला-पोसा और जिससे उसने बहुत-सी शिक्षाएँ प्राप्त कीं, उसे छोड़ रहा था। हँसा इसलिए कि वह नये शरीर में प्रवेश करके और अधिक सिद्धियाँ प्राप्त कर सकेगा।”
राजा का यह जवाब सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा जाकर फिर उसे पकड़ लाया तब मार्ग में उसने अगली कहानी सुनाई।