माता की मृत्यु पर सखी का संवेदना पत्र ।
नई दिल्ली ।
दिनांक 16 अगस्त,
प्रिय सविता,
सप्रेम नमस्ते ।
कल उर्मि से तुम्हारी माता जी के निधन का समाचार सुनकर बड़ा दुख हुआ । उनका स्वास्थ्य तो अभी बहुत अच्छा था फिर यह अकस्मात वज्रपात कैसा? विश्वास नहीं हो रहा है कि एक सहृदया महिला हमारे बीच नहीं रही हैं; किंतु इस मृत्यु जैसे कटु सत्य के आगे सभी ने सिर झुकाया है । बड़े-बड़े पुण्यात्मा, संयमी, परमार्थी और महाबली इसके चंगल से स्वयं को नहीं बचा सके
कन्या के लिए माँ से बढ़कर और कोई सख-दुख की सच्ची साथिन नहीं है । उनकी हर स्मृति तुम्हें हर समय व्याकुल करती होगी। फिर भी तुम्हें धैर्य रखना होगा । तुम्हारी आँखों में अश्रु देखकर तुम्हारे पिता जी बहुत ही व्यथित हो जाते होंगे । अब भविष्य में उन्हें ऐसा अवसर प्रदान न करना । माता जी के स्थान पर उनकी देखभाल का दायित्व तुम पर आ गया है । उनके स्वास्थ्य का पूरा-पूरा ध्यान रखना ।
प्रिय सखी । श्री कृष्ण ने गीता में कितना सुंदर कहा है, ‘जो जन्मा है, वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होगा और जो मृत्यु को प्राप्त हो चुका, उसका जन्म लेना भी अवश्यंभावी है।’ यह देह तो नाशवान वस्तु है । अतः धैर्य रखकर पिता जी और छोटे बहन-भाइयों को संभालो । तुम्हारे ऊपर तो इन नन्हे-मुन्नों का भी दायित्व है । मेरी प्रबल इच्छा थी कि मैं इस समय तुम्हारे दुख में तुम्हारे पास रहकर हाथ बँटाती ; किंतु यहाँ घर-गृहस्थी में ऐसी बँधी हूँ कि निकलने का ही अवसर नहीं मिलता। तुम्हारे जीजा जी की अस्वस्थता ने मेरे पैरों में बेबसी की जंजीरें डाली हुई हैं । वैसे मेरा मन तुम्हारे साथ है । मेरे योग्य कोई सेवा हो तो निस्संकोच लिख देना । अरविंद की पढाई के विषय में भी लिखना।
पूज्य पिता जी को हर प्रकार से धैर्य बँधाना । वास्तव में यह वज्रपात तो भगवान ने उनके साथ किया है । इस अवस्था में उनकी जीवन सहचरी छूट गई। वृद्धावस्था में पत्नी का वियोग बहुत ही असहनीय होता है । अधिक क्या लिखू? तुम स्वयं ही समझदार हो।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा ।
तुम्हारी प्रिय सखी,
रत्नमाला