मित्र की और से सांत्वना पत्र का जवाब देते हुए मित्र को पत्र।
शिव कुटीर,
कानपुर ।
दिनांक 16 सितंबर, ……
प्रिय मित्र दयाल,
सप्रेम नमस्ते ।
तुम्हारे 3 सितंबर का सांत्वना भरा पत्र मिला । उसे पढ़कर मुझे कुछ राहत मिली। पिता जी वास्तव में महान आत्मा थे । उनका अभाव किसी तरह भी पूरा नहीं हो सकता है। सारे परिवार को वह प्रति क्षण खटकता रहता है । उनके सार्वजनिक कार्य, उनकी आदर्शपूर्ण बातें और उनका मुसकान भरा चेहरा रह-रह कर याद आता है। उनका स्नेहांचल हमारे ऊपर से क्या उठ गया, सब कुछ ही चला गया । फिर भी स्वयं को संभालना होगा । इन वर्तमान परिस्थितियों का आदी बनकर उनके छोड़े हुए अधूरे कार्यों को पूरा करना होगा ।
बंधु ! जीवन की गाड़ी तो किसी न किसी तरह चलती ही रहेगी। किंतु इस आकस्मिक आपत्ति के समय तुम मित्रों की सदभावना और सहानुभूति का मुझे बड़ा सहारा है।
शेष फिर ।
तुम्हारा चिरस्नेही,
कृष्ण कुमार