मित्र को उसकी पत्नी की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करते हुए पत्र ।
सी 8, मॉडल टाउन,
दिल्ली।
दिनांक 13 अप्रैल,
प्रिय प्रवीण,
सप्रेम नमस्ते ।
अभी सुमन भाभी की हृदय गति रुक जाने से मृत्यु के समाचार ने मुझे विक्षिप्त-सा कर दिया है। ऐसी स्थिति में तुम्हें क्या लिखकर सांत्वना दूं? कल का सुख संपदा से पूर्ण प्रणय नीड़ आज सूना पड़ा, तुम्हें खाने को दौड़ रहा होगा। सुमन भाभी के भीने-भीने स्नेह की अनगिनत स्मृतियाँ तुम्हें बारंबार आकर कचोट रही होंगी । जब उनके वियोग से यहाँ मेरा बुरा हाल है और हृदय छलनी हुआ जा रहा है, तो तुम्हारी क्या गति होगी ? इसका अनुमान करते ही कलेजा मुँह को आने लगता है । फिर भी मैं तुम्हारे इस दुख को दूर नहीं कर सकता।
बंधुवर ! सुमन भाभी सती लक्ष्मी स्वरूपा थीं । उनके जीवन काल में तुम स्वछंद पंछी की तरह विचरते थे । घर गृहस्थी की ओर से तुम्हें निश्चित कर रखा था । अब तुम्हें वह भी संभालनी होगी। उनकी धरोहर का पूरा-पूरा ध्यान रखना होगा । उस अबोध बच्ची को माँ का वियोग न खटकने पाये । पिता के साथ-साथ अब तुम उसकी माँ भी हो । इसलिए तुम्हें धैर्य धारण करना ही होगा। इसके अलावा और कोई चारा नहीं है।
प्रवीण ! सुमन भाभी चली गईं, उन्हें किसी प्रकार भी लौटाया नहीं जा सकता। अब उनकी स्मृति चिह्न रह गई है कविता । अपनी जीवन सहचरी के इस चिह्न को पाल-पोसकर ऐसा बना दो कि इसके साथ ही उनका नाम भी अमर हो जाए । इससे उनकी आत्मा को शांति मिलेगी और तुम्हारा ध्यान भी बँट जाएगा। मेरा सहयोग किसी प्रकार संभव हो, तो तत्काल सूचित करना । इससे अच्छा यह है कि तुम कविता को लेकर कुछ दिनों के लिए यहाँ चले आओ । तुम्हारा मन बहल जाएगा। मैं तुम्हारी राह देखूगा ।
जीवन एक संघर्ष है। इसकी कसौटी पर ही कसकर मानव खरा उतरता है । अब भगवान ने तुम्हें यह समय दिखाया है । धैर्य से काम लो ।
शेष मिलने पर ।
तुम्हारा स्नेहभाजन,
अरुण