मित्र को उसकी विपत्ति पर सहानुभूति प्रकट करते हुए पत्र
814, कुंडेवालान,
दिल्ली।
दिनांक 13 अगस्त,
प्रिय बंधुवर,
सप्रेम नमस्ते ।
आज आपका कृपा पत्र मिला । पढकर अत्यंत दुख हुआ । ऐसे स्थान पर जहाँ आप रहते हैं प्रायः कम ही वर्षा हुआ करती है। किंतु इस बार अचानक अतिवृष्टि के कारण आपके मकान को क्षति पहुँची। आर्थिक संकटों में आप पहले ही कई मास से घिरे हुए हैं। घर में माता जी असाध्य रोग से पीडित हैं। यह मेरा भी दुर्भाग्य ही है कि इतने दिनों तक मुझे आपका कोई समाचार प्राप्त न हो सका । इसे ईश्वरीय प्रकोप कहा जाए या जीवन की परीक्षा, कुछ समझ में नहीं आता।
बंधु । मेरा दृष्टिकोण तो यह रहा कि यदि धैर्य के साथ कठोर परिश्रम किया जाए तो लक्ष्मी अवश्य हमारे पग चूमेगी । जीवन में विपत्तियों का सामना करना ही सुख की राह को प्रशस्त करना है । विश्वास रखिए, यह आपदा के बादल कुछ ही दिनों में नष्ट हो जाएँगे। मैं यथाशक्ति आपकी सहायता करता रहूँगा । इच्छा तो कुछ और ही है, पर अभी मैं मनीआर्डर द्वारा केवल 250 रुपये ही भेज रहा हूँ। आप निस्संकोच पत्र लिखते रहिएगा।
हमारी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपका परिवार शारीरिक एवं आर्थिक दृष्टि से सुखी व संपन्न रहे । माता जी तथा भाभी जी को नमस्ते व बच्चों को प्यार ।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में ।
आपका अभिन्न मित्र,
भास्कर