उधार लौटा न पाने की असमर्थता जताते हुए मित्र को पत्र ।
3/4 मॉडल टाउन,
दिल्ली।
दिनांक 15 जनवरी,
प्रिय मित्र अनिल,
सप्रेम नमस्ते ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु।
कुछ दिन पूर्व तुम्हारा पत्र मिला। यह विदित हुआ कि तुम सपरिवार ‘दक्षिण भारत दर्शन’ के लिए जा रहे हो। इसके लिए तुमने पाँच सौ रुपये वापस माँगे हैं। भाई अनिल, तुम्हारी इस राशि को लौटाने के लिए मैं स्वयं बहुत चिंतित हूँ। मैंने इन्हें वर्ष के अंत में लौटाने का आश्वासन दिया था। मेरा विचार था कि तब तक बहुत-सी परेशानियों से मुक्त हो चुकूँगा और अपनी बोनस की राशि में से ये रुपये आसानी से लौटा सकूँगा; किंतु आपदाएँ जब आती हैं तो अकेली नहीं आतीं । उधर तुम्हारी भाभी जी बीमार हुई थीं, इधर एक दिन चोर हाथ साफ़ कर गया। रसोई के बर्तन तक उठाकर ले गया। सारा सामान जुटाने पर फिर बहुत-सा धन खर्च करना पड़ा। अतः इच्छा होते हुए भी इस समय मैं तुम्हारी राशि नहीं लौटा सकूँगा; किंतु मई के आरंभ में अवश्य भेज दूंगा। इससे यात्रा में कदाचित कुछ विघ्न पड़ जाए। यदि संभव हो तो इस समय अन्यत्र से रुपये का प्रबंध करके दक्षिण भारत घम आओ। मई में रुपये अवश्य लौटा दूंगा। दर्शनीय स्थलों का ब्यौरा सहित पत्र अवश्य लिखना।
तुम्हारा अभिन्न मित्र,
सुभाष