विवाह संबंधी बातचीत चलाने के विषय में मित्र को पत्र ।
श्याम कुटीर,
देहरादून ।
दिनांक 12 जनवरी, ….
प्रियवर सुधाकर जी,
सप्रेम नमस्ते ।
आज कमलेश को साथ छोड़े हुए एक वर्ष से अधिक समय हो गया । बच्चों के लालन-पालन में अब तक दीदी किसी प्रकार मेरा हाथ बँटाती रहीं। गत सप्ताह मुन्ना इंग्लैंड से लौटकर आ गया है। अब उसका विचार मुंबई में अपना कारोबार चलाने का है । दीदी भी उसी के साथ जाना चाह रही हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों का क्या होगा? यह प्रश्न मुझे खाये जा रहा है। होस्टल में रखकर शिक्षा दिलाने का मुझ में सामर्थ्य नहीं है और किसी अनाथालय में भेजकर उन्हें अनाथ बनाना नहीं चाहता। ऐसी स्थिति में दीदी व कई मित्रों ने पुनर्विवाह के लिए जोर दिया है।
मैं भी सोचता हूँ कि बच्चों का हित इसी में है कि किसी ऐसी विधवा या परित्यक्ता नारी से विवाह करूं, जो कि कुछ सशिक्षिता भी हो और कमलेश की धरोहर को अपना ही समझकर पालन करे तथा मेरे लेखन कार्य में भी हो सके तो कुछ सहायता पहुँचा दे।
इस विषय में दीदी ने एक लड़की की ओर संकेत किया है। बच्चे भी उससे हिले-मिले से है । वह भी बच्चों को बड़ा प्यार करती है। और सबसे बड़ी बात यह है कि वह भी समाज के क्रूर हाथों का शिकार है। यदि यह संबंध हो गया तो दोनों ही डूबने से बच जाएंगे। इसमें कोई पाप भी नहीं है।
वह लड़की है सरोज। मेरी इस स्पष्टता से नाराज़ मत हो जाना बंधु ! बहुत सोचने के बाद ही इस पत्र को लिखने की धृष्टता की है। मैं चाहता हूँ कि इस विषय में सरोज से बातचीत करके स्पष्ट रूप से लिख भेजना। यदि किसी भी रूप में सरोज इस संबंध के लिए तैयार न हो. तो इसकी चर्चा भविष्य में किसी के आगे मत कीजिएगा।
कदाचित आपने इस संबंध के विषय में पहले सोचा भी नहीं होगा । खैर, जब हमारे मन निष्पाप हैं तो लोकाचार की दृष्टि से मिथ्या संकोच भी उचित नहीं है ।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में।
भवदीय,
श्याम