एक प्रेमी का प्रेमीका के नाम प्रणय पत्र
दिल्ली।
दिनांक 20 जून,……
प्रिय,
बहुत दिनों से तुम्हें पत्र लिखने की सोच रहा था, पर साहस नहीं हुआ था। किसी तरह साहस बटोर कर तुम्हारे प्रति हृदय के उदगार प्रगट कर रहा हूँ।
रजनीगंधे ! तीन वर्ष से तुम मेरे कॉलिज में पढ़ रही हो । इस अवधि के बीच हमें एक-दूसरे को समझने के कितने ही अवसर मिले हैं । कई बार तुम कॉलिज की ‘हिंदी परिषद्’ द्वारा आयो जत नाटकों में मेरे साथ नायिका का अभिनय कर चुकी हो । अब यही प्रणय का अभिनय मेरे जीवन का आधार बन गया है। मेरे हृदय ने तुम्हें जीवन संगिनी बनाने का निश्चय कर लिया है ।
तुम भी पत्र को पढ़कर कहोगी कि अजीब इंसान हूँ मैं, बिना तुम्हारी राय लिए, ऐसा अधिकार उमा बैठा हूँ। हो सकता है कि तुमने किसी और को जीवन का आधार चुन लिया हो, पर विश्वास नहीं होता । तुम्हारा मेरे प्रति अगाध स्नेह इस बात का साधा है कि तुम मेरे प्रस्ताव को ठुकराओगी नहीं।
गंधे ! तुम सरीखी सुसंस्कृत पत्नी को पाकर मेरा लक्ष्य पूर्ण हो जाएगा । इसके साथ ही इस बात का विश्वास रखो कि मैं तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट न होने दूंगा । तुम्हारी स्वच्छंद विचारधारा में मैं कदापि बाधक नहीं बनूँगा ।
प्रियतमे ! मेरी दृष्टि में पत्नी साधना की निधि है । वह अचल संपत्ति नहीं, संपदा है, अगाध रल राशि है । तुम वास्तव में मेरे जीवन की अगाध रल राशि हो । अब मैं उस राशि को बटोर कर हृदय में छिपा लेना चाहता हूँ, ताकि कोई तुम्हें मुझसे छीन न सके।
प्रिये । हमारा छोटा-सा प्रणय नीड़ होगा । हमारे स्निग्ध स्नेह सूत्र से उसका निर्माण हुआ होगा और फिर हमारे प्रणय की अमर बेलि जनहितार्थ फल जाएगी । यह है मुझ पगले का स्वप्न । क्या इसे तुम साकार कर सकोगी ?
कहने के लिए तो बहुत कुछ बाकी है । डरता हूँ कि कहीं तुम नाराज न हो जाओ । इस पत्र का उत्तर मिला तो मैं अपने को धन्य समझंगा।
तुम्हारा चिर स्नेही,
अतुल