बाल श्रम की समस्या
ऐसे बच्चे जो बचपन में ही मजदूरी करने के लिए विवश हो जाते हैं, ‘बाल श्रमिक’ कहलाते हैं। निर्धनता, पारिवारिक परिस्थितियाँ, जनसंख्या वधि तथा माफ़िया गिरोह आदि बाल श्रम को बढ़ावा देते हैं। समाज से उपेक्षित एवं तिरस्कृत बच्चे भी अपना पेट भरने के लिए बाल श्रमिक बन जाते हैं। बाल श्रमिकों को घरों, दुकानों, होटलों, स्टेशनों तथा बस अड्डे आदि पर काम करते देखा जा सकता है। बाल श्रमिकों को अपमान, शारीरिक प्रताड़ना, यौन शोषण जैसी कष्टपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। यही नहीं, इन्हें अस्वस्थ परिस्थितियों में कम वेतन देकर अधिक समय तक काम करवाया जाता है। बचपन में बाल श्रमिक जूझते-जूझते नारकीय जीवन की वैतरणी में बिलबिलाते रहते हैं। यद्यपि सरकार ने बाल श्रम जैसी सामाजिक बुराई को समाप्त करने के लिए कानून बनाया है, जिसमें जोखिम भरे कार्यों को करने के लिए 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को काम पर रखना दंडनीय अपराध है। गैरसरकारी संगठनों ने भी ‘बचपन बचाओ’ जैसे आंदोलन शुरू किए हैं। फिर भी काँच, कालीन, माचिस, आतिशबाजी और पटाखे, मिट्टी के बर्तन इत्यादि उद्योगों में इनकी काफ़ी संख्या अभी भी देखने को मिलती है। इस दिशा में हम सबको सोचना होगा और प्रयास करने होंगे क्योंकि अभी भी अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिल पा रहे।