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Hindi Essay on “Rango ka Tyohar-Holi”, “रंगों का त्योहार-होली” Hindi Paragraph, Speech, Nibandh for Class 6, 7, 8, 9, 10 Students.

रंगों का त्योहार-होली

Rango ka Tyohar-Holi

जब हम मौज-मस्ती और रंगों के त्योहार की बात करते हैं तो हमें तुरंत होली का ध्यान आता है। होली के साथ जो मस्ती, उमंग और स्वच्छंदता जुड़ी हुई है, वह किसी अन्य त्योहार के साथ नहीं। यह हिंदुओं का एक बड़ा त्योहार है।

होली का पर्व फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन संध्या के होलिका-दहन होता है। बंसत पंचमी के दिन से ही लकड़ियों के ढेर इकट्ठे करने शुरू कर दिए जाते हैं, नाचते-गाते हैं और एक-दूसरे के गले मिलते हैं। वे नए अनाज की बालों को भूनकर आपस में बाँटते हैं।

होली के साथ भक्त प्रहलाद की कथा जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में हिण्यकशिपु नाम का एक दैत्य राजा था। वह नास्तिक और ईश्वर-द्रोही था। उसने अपनी प्रजा को चेतावनी दे रखी थी कि कोई ईश्वर का नाम न ले, अन्यथा उसे कठोर दंड दिया जाएगा। उसने कठोर तप करके ब्रह्मा से एक अनोखा वरदान पा लिया था जिससे वह अपने आपको अमर समझने लगा था। हिण्यकशिपु का एक पुत्र था प्रह्लाद । वह ईश्वर का परम भक्त था। उसने अपने पिता की आज्ञा मानने से मना कर दिया। पहले हिण्यकशिप ने उसे समझाने की कोशिश की पर वह न माना। तब उसने प्रहलाद को कठोर दड टिरा यहाँ तक कि उसे मारने की भी कोशिश की, पर प्रहलाद का कुछ नहीं बिगड़ा। हिण्यकशिपु की होलिका नाम की एक बहन थी। उसे यह वरदान प्राप्त था कि आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। हिण्यकशिपु ने अपनी इस बहन की मदद से प्रहलाद को मारने का निश्चय किया। उसकी आज्ञा पाकर होलिका प्रहलाद को लेकर चिता में बैठ गई। चिता में आग लगा दी गई। ईश्वर की कृपा से प्रहलाद का तो कुछ नहीं बिगड़ा, पर होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। तभी से लोग होली के त्योहार को मनाते चले आ रहे हैं।

ऐसा भी माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था।

अगले दिन फाग का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग सुबह से ही एक-दूसरे पर रंग डालना, गुलाल मलना और गले मिलना शुरू कर देते हैं। रंग डालने वालो की टोलियाँ दिन भर गलियों में घूमती रहती हैं। गलियों बाजारों और सड़कों पर जिधर दृष्टि डालिए, उधर ही मस्ती और आनंद का सागर हिलोरें मारता दिखाई पड़ता है। इस दिन अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, शिक्षित-अशिक्षित का भेद मिट जाता है।

अब इस त्योहार में कुछ दोष भी आ गए हैं। कुछ लोग भाँग, शराब आदि के नशे में चूर होकर अपना आपा खो बैठते हैं जिससे कई बार दुर्घटनाएं हो जाती हैं। कुछ लोग रंगों में हानिकारक तत्वों की मिलावट कर देते हैं। या दूसरों पर कीचड़, गोबर या काला तेल डाल देते हैं। इससे हर्ष विषाद में बदल जाता हैं इन्हीं दोषों के कारण बहुत-से लोग होली खेलते हुए डरने लगे हैं।

होली मस्ती, प्रेम, आंनद और खुशी का त्योहार है। हमें इस त्योहार को सभी बुराइयों को छोड़कर हँसी-खुशी से मनाना चाहिए। यह पाप पर पुण्य की विजय का प्रतीक है, अत: इसे मनाने की सार्थकता तभी है जब हम अपने भीतर की आसुरी प्रवृतियों को जलाकर पूरी तरह निर्मल मन वाले बन जाएँ।

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