मधुर वाणी
Madhur Vani
उपर्युक्त पंक्ति संत कवि कबीर के दोहे का अंश है। पूरा दोहा इस प्रकार है
“मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर
स्रवन द्वार हवै संचरै, सालै सकल सरीर ॥”
अर्थात् मधुर वचन एक औषधि के समान होते हैं और कटु वचन एक तीर के समान, जो हमारे कानों के दवारा प्रवेश पाकर हमारे शरीर को बेधते रहते हैं, कष्ट पहुँचाते रहते हैं। एक अन्य उक्ति भी है, जिसका अर्थ है-शस्त्र का घाव भर जाता है, पर कटु वचनों का घाव नहीं भरता। किसी के भी कटु वचन हमें निरंतर तीर की तरह सालते रहते हैं। मधर वाणी को हम कितना पसंद करते हैं, इसका एक अत्यंत सामान्य उदाहरण देखते हैं-कौआ और कोयल दोनों का रंग काला होता है. पर कौए को कोई भी अपने घर की छत या मँडेर पर नहीं बैठने देता, पर कोयल को देखते ही चाहते हैं कि वह हमारी छत पर बैठे। आखिर क्यों ? कौआ अपनी कर्कश वाणी के कारण सब की उपेक्षा का शिकार होता है, जबकि कोयल अपनी मधुर वाणी के कारण सबको पसंद है। मधुर वचनों से समाज में आदर प्राप्त होता है तथा विनम्रता, सहदयता जैसे गण विकसित होते हैं। मीठे वचन बोलने से श्रोता को ही आनंद नहीं मिलता, वक्ता की आत्मा भी आनंद का अनुभव करती है। इसके विपरीत कट वचनों से सुनने वाला तिलमिला उठता है, जिससे क्रोध तथा शत्रता का विकास होता है। कटु वचन बोलने वाला निंदा का पात्र होता है तथा हर जगह लोगों द्वारा धिक्कारा जाता है। अत: हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि कभी भी कटु वचनों का प्रयोग न करें।