मेरा जीवन लक्ष्य
‘इस पथ का उद्देश्य नहीं है, श्रांत भवन में टिक रहना,
किंतु पहुँचना उस सीमा तक, जिसके आगे राह न हो।‘
कविवर प्रसाद की इन्हीं पंक्तियों पर विचार करने के बाद मैंने गहन विचार-मंथन किया, तो तय किया कि मैं एक सफल अध्यापक बनूँगा। यद्यपि एक डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट आदि बनना आर्थिक दृष्टि से श्रेष्ठ है, पर मैंने अपने जीवन का उद्देश्य अधिकाधिक धन कमाना नहीं, अपितु उससे भी बढ़कर अच्छे नागरिकों का निर्माण करके एक अच्छे समाज का निर्माण करना निश्चित किया है। मैं अपने जीवन लक्ष्य के बारे में काफ़ी गंभीर हूँ। आज जब मैं समाज में बढ़ते भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, अपराध तथा कर्तव्यहीनता के दूषित वातावरण को देखता हूँ, तो मेरा हृदय चीत्कार कर उठता है। मुझे लगता है कि इन सबका कारण कहीं-न-कहीं अच्छी शिक्षा न मिलना भी है। आज के विदयार्थी अच्छी शिक्षा तथा अच्छे शिक्षकों के अभाव में दिशाभ्रमित हो गए हैं तथा अपनी संस्कृति से दूर जा रहे हैं। मैं अध्यापक बनकर अपने छात्रों को इस प्रकार से शिक्षित करूँगा कि उनमें नैतिक मूल्यों एवं भारतीय संस्कारों का पल्लवन हो सके तथा वे जीवन में सत्यं, शिवं, सुंदरं की भावना भर सकें। मेरा यह मानना है कि अध्यापक राष्ट्रीय संस्कृति के माली होते हैं। मैं अध्यापक बनकर भारत के भविष्य का निर्माण करूँगा तथा अपने विद्यार्थियों में सद्गुणों एवं सुविचारों की ऐसी ज्योति भरूँगा कि वे प्रबुद्ध एवं कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनकर राष्ट्र रूपी भवन में नींव की ईंट बनकर उसे मज़बूत आधारशिला दे सकें।