मेरा प्रिय कवि – कबीर
हिंदी साहित्य अत्यंत समृद्ध है। हिंदी काव्य वाटिका में अनेक पुष्प विकसित हैं। हिंदी के कवियों पर दृष्टिपात करने के बाद यदि किसी ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया, किसी ने सर्वाधिक मेरे मानस-पटल पर अपनी छाप छोड़ी तो वे हैं-समाज सुधारक संतकवि कबीर। कबीर ने अन्य महान कवियों की तरह न तो कई महान काव्यों की रचना की तथा न ही उनकी भाँति शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की और न ही पारिवारिक संस्कार थे। कबीर का जन्म-स्थान, समय, माता-पिता, शिक्षा-दीक्षा आदि के संबंध में विवाद है। इनके जन्म के संबंध में तो अनेक किंवदंतियाँ हैं, जिनमें एक जो सर्वाधिक प्रचलित है कि इनका जन्म एक विधवा के गर्भ से हुआ और एक जुलाहा दंपति ने इस बच्चे का पालन-पोषण किया। निर्धनता के कारण कबीर पढ़ नहीं पाए तथा पिता के कार्य में हाथ बँटाने लगे। कबीर ने अपनी साखियों, सबदों आदि के द्वारा तत्कालीन समाज से टक्कर ली। इस अशिक्षित जुलाहे के सामने बड़े-बड़े पंडित और मौलवी भी निरुत्तर हो जाते क्योंकि कबीर के तर्कों का उनके पास कोई उत्तर नहीं होता था। मूर्ति-पूजा, जाति-पाति, छुआछूत, रूढ़ियों, अंधविश्वासों तथा ढोंग-ढकोसलों को जिस पैनी नज़र से कबीर ने देखा और जनता की भाषा में व्यक्त किया, वह अद्भुत है। कबीर ने अपनी वाणी द्वारा अंधविश्वासों और रूढ़ियों की जड़ों को हिलाकर रख दिया तथा ढोंग-ढकोसलों को ध्वस्त कर दिया।