राष्ट्रभाषा हिंदी
प्रत्येक स्वाधीन राष्ट्र की एक राष्ट्रभाषा अवश्य होती है, जो शासन शिक्षा का माध्यम तथा राष्ट्र के गौरव की पहचान होती है। जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो देश का संविधान नहीं था। भारत का संविधान बनने में लगभग दो-ढाई वर्ष लगे। संविधान सभा के सामने अनेक समस्याएँ थी, जिनमें एक थी-राजभाषा की समस्या। संविधान में हर दृष्टि से भली-भांति सोच-विचार कर 14 सितंबर, सन् 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया। आज उस घोषणा को कितना अर्सा बीत गया है, पर आज भी भारतीयों में अंग्रेजी भाषा के प्रति मोह समाप्त नहीं हुआ। आज भी राजकाज, कानून-व्यवस्था, शिक्षा जैसे अनेक क्षेत्रों में अंग्रेजी का प्रभाव ज्यों-का-त्यों बना हुआ है, जिसे देखकर लगता है आज भी हम मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम हैं। जब हमारे नेता ही अंग्रेजी बोलकर अपने को अत्याधुनिक तथा उच्च शिक्षा प्राप्त सिद्ध करने में पीछे नहीं हैं, तो फिर आम जनता उनका अनुसरण क्यों नहीं करेगी ? कितनी विचित्र बात है कि भारत में अंग्रेज़ी का ज्ञान रखने वाले केवल 5 प्रतिशत हैं, फिर भी अधिकांश लोग इस विदेशी भाषा के बंधन में जकड़े हुए हैं तथा अपने बालकों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ाना चाहते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि स्वाधीनता के प्रत्येक नागरिक अंग्रेजी के इस मोह-बंधन से निकले और अपनी राष्ट्रभाषा को अपनाए। सरकार को भी चाहिए कि वह हर क्षेत्र में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दे।