शठ सुधरहि सत्संगति पाई
Sath Sudhrahi Satsangati Pai
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसे अनेक लोगों के संपर्क में आना पड़ता है, जिनका प्रभाव उस पर अवश्य पडता है। उत्तम प्रकृति के मनुष्यों की संगति ‘सत्संगति’ कहलाती है। सत्संगति के प्रभाव से दुष्ट भी सुधर जाते हैं। जैसे पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, वैसे ही अच्छे जनों की संगति से शठ भी सुधर जाता है। स्वाति की एक बूँद जब कदली (केले) पर पड़ती है, तो कपूर; सीप के मुख में पड़ती है, तो मोती; पर यदि सर्प के मुख में पड़ जाए, तो विष बन जाती है। व्यक्ति जैसी संगति में बैठेगा, वैसा ही फल प्राप्त होगा। काँच का एक टुकडा, सोने के संपर्क में आकर मणि की शोभा देता है, कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूंद मोती की शोभा देती है, लोहे की छोटीसी कील भी पानी में डूब जाती है, पर लकड़ी में जोड़ने पर लोहे के बड़े-बड़े सरिए पानी में तैरने लगते हैं। महापुरुषों तथा सज्जनों की संगति हमारी उन्नति का कारण बनती है, जब कि कुसंगति हमारे पतन का। कुख्यात डाकू अंगुलिमाल महात्मा बुद्ध की संगति पाकर क्रूर कर्म भूल गया। सत्संगति अज्ञान का नाश करती है, वाणी में सत्यता को प्रविष्ट करती है तथा अनेक गुणों का विकास करती है। इसके विपरीत कुसंगति हमें अधोगति की ओर ले जाती है। कर्ण जैसा महादानी दुर्योधन की संगति में रहकर कर्तव्य-अकर्तव्य को भूल बैठा। कुसंगति का प्रभाव व्यक्ति पर थोड़ा या अधिक अवश्य पड़ता है। किसी ने ठीक कहा है-‘काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाए, एक लीक काजर की लागि है पै लागि है।’ हमारा कर्तव्य है कि हम सज्जनों की संगति करें और दुर्जनों से दूर रहें।