कुंभ मेला – हरिद्वार
Kumbh Mela Haridwar
भूमिका
हमारे यहाँ गंगा नदी का बड़ा महत्त्व। समय-समय पर इसमें स्नान करने से स्वर्ग-प्राप्ति की आशा। प्रयाग, काशी, हरिद्वार आदि प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान । प्रत्येक बारहवें, छठवें आदि वर्षों में कुंभ तथा कुंभी आदि पर्वो पर स्नान करना हिंदुओं के लिए विशेष फलदायक।
दृश्य
लाखों मनुष्य स्नान करने गए जिनमें जवान और बूढ़े, स्त्री और पुरुष, सभी थे। चारों ओर नरमुंड-ही-नरमुंड दिखाई पड़ते थे। सरकार की ओर से बड़ा उत्तम प्रबंध था। एक नवीन स्टेशन और बनाया गया था। हर की पैड़ी पर घाट विस्तृत कर दिया गया था। सेवा समिति और पुलिस काफी संख्या में थी। भारतवर्ष के एक कोने से दूसरे कोने तक के मनुष्य आए।
साधु
संतों की संख्या बहुत थी। नागा, गोरखपंथी तथा भिन्न-भिन्न पंथों के साधु सम्मिलित थे। उनके पास हाथी, घोड़े, ऊँट इत्यादि बड़े-बड़े साज-सामान थे। मेले में दुकानें भी हजारों की संख्या में। आरंभ में तो लोगों ने खूब आनंद पाया लेकिन दुर्भाग्य से एक दिन अचानक आग लग उठी, भीड़ में खलबली मच गई।
सहस्रों मनुष्य पैरों के नीचे कुचल गए। अनेकानेक व्यक्ति गंगा में डूब गए। दुकानें जल गईं। करोड़ों रुपयों का माल-असबाब स्वाहा हो गया। उस समय की दुर्दशा का वर्णन असंभव है। लोग रोते-पीटते घर लौटे। किसी का बाप मर गया तो किसी की माता। बाद में कई नगरों में हैजा फैला जिससे अनेक व्यक्ति मरे।
उपसंहार
ऐसे मेलों से लाभ की जगह हानि अधिक है। पूर्व समय में भले ही इनकी उपयोगिता रही हो पर अब नहीं।
अब तो व्यर्थ मनुष्यों को अनेक कष्ट सहने पड़ते तथा उनकी जानें जाती हैं। आर्थिक हानि तथा प्राणहानि।
इस कंभ में जो लोग गए, उन्हें बड़े कटु अनुभव हुए। बहुतों ने शपथ कर ली कि भविष्य में ऐसे स्थानों पर जाने की भूल न करेंगे।