मधुर वाणी का प्रभाव
Madhur Vani ka Prabhav
विजयगढ में एक राजा थे जिनका नाम था राजा अश्विनी सिंह। वे बहुत वीर, प्रतापी और तेजस्वी थे। उनके राज्य में सभी लोग सुखी थे। राजा होने के बावजूद उन्हें अहंकार नहीं था। उनके करीबी मंत्रीगण कहते थे कि राजा की वाणी में सरस्वती विराजमान हैं।
एक बार गरमी के दिनों की बात है, राजा अश्विनी अपने सेवकों के साथ शिकार पर गए थे। दोपहर तक उन्हें कोई शिकार न मिला वे थक गए और एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे। सभी प्यासे थे, प्यास से उनके मुख सूख रहे थे। राजा ने एक सेवक को पानी ढूँढकर लाने को कहा। सेवक पानी की खोज में चला गया थोड़ी ही दूरी पर उसे एक झोंपड़ी मिल गई। वहाँ जाकर उसने देखा कि झोंपड़ी के बाहर एक अंधा और बूढ़ा व्यक्ति बैठा है। राजा के सेवक ने उस बूढ़े व्यक्ति से कहा, “ओ अंधे। इस राज्य के महाराजा के लिए थोड़ा-सा पानी दे दो।” जवाब में बूढ़े ने उसे पानी देने से मना कर दिया। इस बात से सेवक क्रोधित हो गया। उसने कहा, “हे दुष्ट! तेरा इतना साहस! अभी महाराज से तेरी शिकायत करता हूँ।”
सेवक ने लौटकर महाराज को पूरी घटना से अवगत कराया। इस बार राजा ने अपने मंत्री को पानी लाने भेजा। मंत्री महोदय बूढ़े व्यक्ति के पास पहुँचकर अति दंभ से बोला, ” ओ सूरदास। थोड़ा पानी दे दो. महारज प्यासे हैं।” वृद्ध व्यक्ति ने उन्हें भी निराश लौटा दिया। मंत्री ने भी महाराज को पूरी बात से अवगत कराया।
अब महाराज ने स्वयं उस वृद्ध के पास जाने का निश्चय किया। महाराज ने वृद्ध के पास पहँचकर पहले उन्हें प्रणाम किया फिर कहा, “बाबा! मुझे प्यास लगी है, क्या आप थोड़ा-सा पानी देने की कृपा करेंगे?”
इस बार वृद्ध व्यक्ति ने राजा को आशीर्वाद दिया और बैठने को आसान दिया। फिर पीने के लिए शीतल जल दिया। पानी पीकर राजा को शांति मिली। फिर राजा ने वृद्ध व्यक्ति से पूछा, “बाबा! आपने मुझे पानी पिलाया परंतु मेरे सेवकों को पानी देने से क्यों मना कर दिया था.” इस पर वृद्ध ने कहा, “महाराज! मेरा उद्देश्य उन्हें प्यासा रखना नहीं था, परंतु उनकी वाणी में कटुता तथा अहंकार का भाव था। आपकी वाणी में मधुरता है। मधुर वाणी सभी को प्रभावित एवं मोहित करती है।”
यह कहते हुए वृद्ध ने उन सेवकों को भी जल पिलाया। राजा ने अपने सेवकों के कटु व्यवहार के लिए उस वृद्ध व्यक्ति से क्षमा माँगी और अपने नगर लौट आया।