ईमानदार लकड़हारा
Imandar Lakadhara
यदि मानव की लोभावृत्ति उसे हानि पहुँचाती है और संकट को आमंत्रित करती है तो इसके ठीक विपरीत ईमानदारी एवं सच्चरित्रता उसके उन्नति-मार्ग को निष्कंटक एवं प्रशस्त करती है, साथ ही उसे इसका समुचित फल भी प्रदान करती है।
इसी तथ्य को साबित करती यह कथा पेश है:-
एक ग्राम में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह जंगल से लकड़ियाँ काटता और अपना गुजारा करता।
एक दिन वह एक जगह से लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी में जा गिरी। वह बहुत दुःखी हुआ कि अब मेरा गुजारा कैसे होगा? यह सोचकर वह रो पड़ा। कुछ देर तक वह रोता रहा। इतने में वहां जल देवता प्रकट हो गए। उसने लकड़हारे से पूछा “तुम क्यों रो रहे हो?” लकड़हारे ने जवाब दिया-मेरी कल्हाड़ी पानी में गिर गई है। देवता पानी में गया और सोने की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आया। उसने पूछा, क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है? लकड़हारे ने कहा-नहीं, श्रीमान् यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। अब देवता पानी से चाँदी की कुल्हाड़ी ले आया और अपना प्रश्न दोहराया तो लकड़हारे ने उसे भी अपनी कुल्हाड़ी नहीं माना। अन्त में देवता लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आया तो लकड़हारे ने कहा, हां! श्रीमान, यही मेरी कुल्हाड़ी है।
देवता उसकी ईमानदारी पर बहुत खुश हुआ और उसने उसे तीनों कुल्हाड़ियाँ दे
शिक्षा-ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।