सोच – समझ कर बोले
एक व्यक्ति ने एक पादरी के सामने अपने पड़ोसी की खूब निंदा कि. बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो वह पुनः पादरी के पास पहुंचा और उस गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा. पादरी ने उससे कहा कि वह पंखो से भरा एक थैला शहर के बीचोबीच बिखेर दे. उस व्यक्ति ने पादरी कि बात सुनकर ऐसा ही किया और फिर पादरी के पास पहुँच गया.
उस व्यक्ति की बात सुनकर पादरी ने उससे कहा कि जाओ और उन सभी पंखो को फिर से थैले में भरकर वापस ले आओ. वह व्यक्ति थोड़ा हिचका पर पादरी का आदेश मानते हुए उसने ऐसा करने की कोशिश की. काफी प्रयत्न करने के बाद भी वह सभी पंखो जमा नहीं कर सका. जब आधा भरा थैला लेकर वह पादरी के सामने पहुंचा तो पादरी ने उससे कहा की यही बात हमारे जीवन में भी लागू होती है.
जिस तरह तुम पंख वापस नहीं ला सकते, उसी तरह तुम्हारे कटु वचन को भी वापस नहीं किया जा सकता. उस व्यक्ति का जो नुकसान हुआ है, अब उसकी भरपाई संभव नहीं है. आलोचना का मतलब नकारात्मक बातें करना और शिकायत करना ही नहीं होता बल्कि आलोचना सकारात्मक भी हो सकती है. आपकी कोशिश यह होनी चहिये की आपकी आलोचना से, आपके द्वारा सुझाये विचारो से उसकी सहायता हो जाएँ.
शिक्षा/Moral:- दोस्तों कई बार देखा गया है कि माँ – बाप के द्वारा बच्चो से की गई बातचीत का ढंग उनके भविष्य कि रूपरेखा भी तय कर देता है. इसलिए घर से लेकर बाहर दोस्तों के साथ कुछ भी कहने में सावधानी बरतें. इसलिए अगर आप समझ कर बोलेंगे तो हमेशा फायदे में रहेंगे.