कुम्हार और सुराही
एक सुराही थी, वह बहुत ही सुंदर थी, उस पर सुंदर – सूंदर बेल, बूटे, फूल और चित्रकारी बनी हुई थी।
भीमा कुम्हार सुराही को बार-बार देखता और खुश हो मन ही मन सोचता कि मेरी मेहनत से ही सुराही इतनी सुंदर बनी है।
भीमा कुम्हार बहुत थका हुआ था, सोचते – सोचते उसे नींद आ गयी और वह वही सो गया। नींद लगते ही वह सपना देखने लगा।
उसने सपने में देखा कि सुराही के पास रखी मिट्टी हिली और कहने लगी- “सुराही ओ सुराही, मैने तुम्हें बनाया सूंदर रूप तुम्हारा मुझसे ही हैं आया”
मिट्टी की आवाज सुन पास में रखे बाल्टी का पानी छलका और बोला- “सुराही ओ सुराही, मैने तुम्हें बनाया सूंदर रूप तुम्हारा मुझसे ही हैं आया”
मिट्टी और पानी की बात सुनकर चाक भी चुप नहीं रह पाया, उसने बोला – तुम दोनों थे कीचड़ मिट्टी इस सचाई को जान लो बनी सुराही मेरे कारण इस बात को तुम मान लो।
पानी मिट्टी और चाक की बात सुनकर बुझती आग भी कहने लगी- तुमसब बातें कच्ची करते, कच्चा है काम तुम्हारा तपकर मुझमे बनी सुराही असली काम हमारा।
भीमा कुम्हार ने सपने में सबकी बातें सुनी और बोला – सब चुप हो जाओ, चलो सुराही से ही पूछते है कि उसे बनाने में किसका सहयोग ज्यादा हैं।
सुराही ने जब यह सवाल सुना तो वह बोली- किसी एक का काम नही ये सबकी मेहनत सबका काम, मिलजुल कर कर सकते है अच्छे – अच्छे सूंदर काम..!!
सुराही ने समझाया कि मुझे बनाने में कुम्हार, मिट्टी, पानी चाक सबका बराबर सहयोग हैं। सुराही की बात सबको समझ आ गयी और वे आपस में मिलजुल कर रहने लगे।