मित्र को ऋण न दे पाने की असमर्थता दर्शाते हुए पत्र
मेरठ।
दिनांक 28 मई,
प्रिय सत्यवीर,
सप्रेम नमस्ते ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु ।
तुम्हारा 25 मई का पत्र मिला । रंजना भाभी की बीमारी की सूचना पाकर मन व्यथित हो उठा । भगवान उन्हें शीघ्र ही स्वस्थता प्रदान करे, ऐसी हम सब की कामना है।
बंधु । जीवन में प्रथम बार तुमने आर्थिक सहायता के लिए हाथ बढ़ाया था, पर मेरा दुर्भाग्य कि मैं तुम्हारी इस दुख की घड़ी में काम न आ सका । इसी वर्ष एक नए कारोबार में हाथ डाल दिया था । फलतः सिर मुंडाते ही ओले पड़े। बैठे बिठाए अच्छी खासी रकम हाथ से निकल गई । तुम्हारी भाभी कुछ मदद के लिए तुम्हें लिखवा रही पी, सो तुम स्वयं ही परेशान हो । किसी और को टटोलँगा । अच्छा भाभी जी को नमस्ते व बच्चों को मृदुल प्यार ।
भाभी जी की स्वस्थता के विषय में यदा-कदा पत्र भेजते रहना ।
तुम्हारा चिरस्नेही,
प्रदीप कुमार