ऋण वापस करते हुए मित्र को धन्यवाद पत्र ।
दिल्ली।
दिनांक 12 जनवरी,
प्रिय बंधु अनिल,
सप्रेम नमस्ते।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। गत सप्ताह तुम्हारा पत्र मिल गया था । तुम्हारे सपरिवार ‘दक्षिण भारत दर्शन’ के कार्यक्रम को पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई । यहाँ के लगभग सभी स्थलों पर भारतीय संस्कृति बिखरी पड़ी है । यहाँ के देवालयों एवं गुफाओं की वास्तुकला विश्व भर में अद्वितीय है। आज से पंद्रह वर्ष पूर्व इन्हें देखने का अवसर मिला था, पर तुम्हारी भाभी इन्हें देखने के लिए विशेष रूप से लालायित हैं। कभी अवसर मिला तो इन्हें भी दिखाने का प्रयास करूंगा।
बंधु । तुम्हारी अमानत तो यथासमय ही लौटा देता, पर कार्य में फँसे रहने के कारण अब तक न भेज सका था । इसके लिए क्षमा चाहता हूँ । कल पाँच सौ रुपये का मनीआर्डर करवा रहा हूँ । राशि पहुँचने पर सूचित करना । भाभी जी को नमस्ते व बच्चों को प्यार ।
तुम्हारा स्नेही मित्र,
सुभाष