मेरी मातृभूमि
Meri Matribhumi
तुलसीदास ने कहा है, “जननी जन्मभमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। मातृभूमि भी माँ के समान ही सारा जीवन हमारा पालन-पोषण करती है। जिस मातृभूमि में हमने जन्म लिया है, जिसके अन्न-जल से पलकर हम बड़े हुए हैं, जिसकी मिट्टी में खेलकर हमने अपना बचपन बिताया है, उस मातृभूमि के प्रति लगाव स्वाभाविक है और जिसे यह लगाव नहीं है, वह देशद्रोही है। मातृभूमि के प्रति प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह उसकी सीमाओं तथा सम्मान की रक्षा करे। उसकी प्रगति के लिए प्रयास करे। उसके संसाधनों को हानि न पहुँचाए तथा सभी लोगों को अपना बंधु-समुझे तथा उनके प्रति मैत्री, प्रेम, दया और भाईचारे की भावना रखे। इसी प्रकार की भावना रखने पर हम अपने देश की उन्नति में सहयोगी बन सकते हैं और अपने देश को उन्नति के चरमोत्कर्ष पर पहुँचा कर अपने कर्तव्य का भली-भाँति वहन कर सकते हैं।