पर्वतराज हिमालय
Parvatraj Himalaya
‘पर्वतराज हिमालय’ भारत के लिए एक अनुपम वरदान है, जो भारत के उत्तर में इसके मुकुट की भाँति सुशोभित है तथा सदियों से भारत के प्रहरी की भूमिका निभा रहा है। कवि दिनकर ने कहा है
‘मेरे नगपति! मेरे विशाल ! साकार, दिव्य, गौरव विराट’ हिमालय की लंबाई लगभग दो हजार पाँच सौ कि०मी० है। इसका पूर्वी और पश्चिमी भाग भारत में है तथा मध्य भाग का एक हिस्सा नेपाल में। हिमालय पर ही संसार की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट विद्यमान है। इसे गौरी शंकर भी कहते हैं। हिमालय की चोटियाँ बर्फ से ढकी रहती हैं।
हिमालय भारत के लिए प्रकृति का अनुपम वरदान है। हिमालय से ही गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिंधु आदि नदियाँ निकलकर भारत-भूमि को शस्य-श्यामल बनाए रखती हैं। हिमालय मध्य एशिया तथा तिब्बत की ओर से आने वाली ठंडी हवाओं को रोकता है तथा दक्षिण-पश्चिम सागर से उठने वाले मानसून का रास्ता रोककर भारत में वर्षा का कारण बनता है। हिमालय के घने वन अनेक जड़ी-बूटियों, खनिजों, वनस्पतियों, फल-फूल तथा लकड़ी के भंडार हैं। हिमालय के निचले भाग पर शिमला, मसूरी, दार्जिलिंग जैसे अनेक रमणीक नगर स्थित हैं। हिमालय पर ही हिंदुओं के अनेक प्रसिद्ध तथा पावन तीर्थ बसे हुए हैं। इनमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, मानसरोवर, ऋषिकेश, हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, अमरनाथ आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं। हिमालय भारतीय संस्कृति से अनंत काल से जुड़ा है। हिमालय अनेक जीव-जंतुओं की शरणस्थली तथा तपस्वियों की साधनास्थली है। यदि हिमालय न होता, तो भारत का वर्तमान स्वरूप इतना सौंदर्यशील न होता। हिमालय देवभूमि है, भारतीय संस्कृति का मेरुदंड है तथा प्रकृति की लीला भूमि है।