किसान और बगुला
Kisan aur Bagula
किसी गांव में एक किसान रहता था, किसान बहुत मेहनती था, उसके खेतों में बहुत अच्छी फसल हुआ करती थी, किसान के खेत के पास ही एक जलाशय भी था, जिसके किनारे बहुत सारे बगुले भी रहा करते थे, बगुले किसान की फसल को काफी नुकसान पहुँचाया करते थे, एक दिन किसान ने बगुलों को पकड़ने के लिए अपने खेत में जाल बिछा दिया, कुछ समाय बाद आकर देखा तो, बहुत सारे बगुले जाल में फंसे हुए थे, इस जाल में एक सारस भी फंसा हुआ था, सारस ने किसान से कहा- किसान भाई में बगुला नहीं हूँ मैं ने तुम्हारी फसल बर्बाद नहीं की है, मुझे छोड़ दो, तुम विचार करके देखो कि मेरी कोई गलती नहीं है, जितने भी पक्षी है, मैं उन सब कि अपेक्षा अधिक धर्म-पारायण हूँ, मैं कभी किसी का नुकसान नहीं करता, मैं अपने बृद्ध माता-पिता का अतीव सम्मान करता हूँ और विभिन्न स्थानों में जाकर प्राण-पण से उनका पालन-पोषण करता हूँ, इस पर किसान बोला- सुनो सारस, तुमने जो बातें कहीं, वे सब ठीक हैं,उनपर मुझे जरा भी संदेह नहीं है, परन्तु तुम फसल बर्बाद करने वालों के साथ पकडे गए हो, इसलिए तुम्हें भी उन्हीं लोगों के साथ सजा भोगनी होगी, इसी लिए कहते हैं कि कुसंगत का फल बुरा होता है.